Surajkund Mela में मध्य प्रदेश और हरियाणा के पारंपरिक उत्पादों की बढ़ी हुई लोकप्रियता

Surajkund Mela: हर साल आयोजित होने वाले सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में विभिन्न राज्यों के थीम पवेलियन आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इन पवेलियनों में सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित कर रहे हैं मध्य प्रदेश के पवेलियन के विभिन्न प्रकार के ईको-फ्रेंडली उत्पाद, जो गोबर से बने हुए हैं। इस पवेलियन में आने वाले पर्यटक इन उत्पादों के प्रति विशेष रुचि दिखा रहे हैं, जो न केवल पर्यावरण के लिए अच्छे हैं, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी लाभकारी हैं।
मध्य प्रदेश पवेलियन में गोबर से बने उत्पादों की विशेष आकर्षण
सूरजकुंड मेले में स्थित मध्य प्रदेश के पवेलियन में गोबर से बने उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई गई है, जिसमें पर्यटक बड़ी संख्या में रुचि ले रहे हैं। इस पवेलियन की एक खास पहचान है स्टॉल नंबर 170, जो इंदौर की निवासी नीता दीप वाजपेयी का है। नीता दीप वाजपेयी का कहना है कि उनके स्टॉल पर शानदार और किफायती उत्पाद उपलब्ध हैं, जो कम बजट में भी बेहतरीन गुणवत्ता प्रदान करते हैं। इनमें से कई उत्पादों में गोबर से बने अगरबत्तियां, एक्यूप्रेशर मैट, शिवलिंग और गणेश प्रतिमाएं शामिल हैं। इन उत्पादों की कीमत मात्र 50 रुपये से शुरू होकर करीब 3000 रुपये तक जाती है।
स्वास्थ्य के लिहाज से फायदेमंद गोबर से बना एक्यूप्रेशर मैट
नीता दीप वाजपेयी ने बताया कि गोबर से बने एक्यूप्रेशर मैट स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत फायदेमंद होते हैं। यह मैट न केवल ब्लड प्रेशर और शुगर को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं, बल्कि इसके द्वारा शरीर के अन्य कई हिस्सों पर दबाव डालकर विभिन्न स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होते हैं। यह एक्यूप्रेशर मैट बहुत ही किफायती कीमत पर उपलब्ध है और इसे हर व्यक्ति अपनी सेहत के लिए उपयोग कर सकता है।
गोवश आश्रयों से स्वावलंबी बन रहे लोग
नीता दीप वाजपेयी, जो दीपांजलि आर्ट एंड क्राफ्ट संस्था से जुड़ी हुई हैं, ने कहा कि गोवश आश्रयों से जुड़ी महिलाएं इस काम से स्वावलंबी बन रही हैं। उन्होंने बताया कि गोबर से बने इन उत्पादों को बनाने के लिए महिलाएं प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है। नीता दीप वाजपेयी ने बताया कि इस परियोजना से अब तक 1000 से अधिक महिलाओं को रोजगार प्रदान किया गया है।





हरियाणा का ‘अपना घर’ और पर्यटकों का बढ़ता आकर्षण
वहीं, सूरजकुंड मेले में हरियाणा के ‘अपना घर’ पवेलियन का भी खासा आकर्षण देखा जा रहा है। यहाँ पर पर्यटक हरियाणवी पगड़ी बांधने और हुक्का पीने की प्रतिस्पर्धा में शामिल हो रहे हैं। ‘अपना घर’ पवेलियन में हरियाणा की पारंपरिक संस्कृति और लोक जीवन की झलक देखने को मिल रही है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के पारंपरिक परिधान प्रदर्शित किए गए हैं और पर्यटक इन परिधानों में फोटो खिंचवाने का आनंद ले रहे हैं।
हरियाणा की पगड़ी: एक प्रतीक और गौरव
डॉ. महे सिंह पूनिया, जो हरियाणा के सांस्कृतिक धरोहर को लोगों तक पहुँचाने का काम कर रहे हैं, ने बताया कि पगड़ी का हरियाणवी संस्कृति में विशेष स्थान है। पगड़ी का इतिहास हजारों साल पुराना है और यह न केवल एक पारंपरिक वस्त्र है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का भी प्रतीक है। हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों जैसे खदड़, बंगर, बागर, अहीरवाल, ब्रिज, मेवात, और कौरवी क्षेत्र में पगड़ी के विभिन्न प्रकार देखे जाते हैं।
पगड़ी का महत्व और उसके नाम
पगड़ी का महत्व हरियाणा के लोक जीवन में बहुत अधिक है। इसे विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे पग, पगड़ी, पगमंडासा, सफा, पेचा, फेंटा, खंडवा, आदि। साहित्य में भी पगड़ी को रुमालियो, पराना, शिशकाय, जलक, मुरैठा, मुकुट, कानटोप, मदिल, मोलिया, और चंडी के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसी वस्तु है जिसे पहना जाता है और यह सिर को सुरक्षित रखने का कार्य करता है।
सूरजकुंड मेले में पगड़ी की लोकप्रियता
इस साल सूरजकुंड मेले में पगड़ी को लेकर पर्यटकों में विशेष आकर्षण देखने को मिल रहा है। पर्यटक हरियाणवी पगड़ी बांधने का अनुभव ले रहे हैं और इसके साथ ही हुक्का पीने की भी प्रतिस्पर्धा हो रही है। इसके साथ ही पर्यटक हरियाणवी खिड़कियों, दरवाजों, चारपाई और ‘अपना घर’ की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कर रहे हैं। इस तरह से हरियाणा की पगड़ी, जो इसके लोक सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है, मेले में खास आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
सूरजकुंड मेला न केवल भारत के विभिन्न राज्यों के सांस्कृतिक और पारंपरिक उत्पादों का संगम है, बल्कि यह हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की सांस्कृतिक पहचान को भी दुनिया के सामने ला रहा है। यहां प्रदर्शित पारंपरिक उत्पाद और सांस्कृतिक धरोहर न केवल भारत से, बल्कि विदेशों से भी आने वाले पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। इन प्रदर्शनों से जहां एक ओर लोक संस्कृति को बढ़ावा मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर इन उत्पादों के माध्यम से स्थानीय महिलाओं को रोजगार और आत्मनिर्भरता भी मिल रही है।