गीता जयंती समारोह में मुख्य अतिथि अशोक छाबड़ा का भावुक उद्बोधन, सभागार श्रद्धा में डूबा
गीता कोई साधारण ग्रंथ नहीं, वह जीवन का सार: मीडिया को-ऑर्डिनेटर अशोक छाबड़ा


गीता हिन्दू धर्म का ग्रंथ नहीं, वह विश्व-मानवता का सार्वभौमिक दर्शन
जींद, 01 दिसम्बर। गीता कोई साधारण ग्रंथ नहीं, वह जीवन का संविधान है, कर्म का दर्शन है और मोक्ष का मार्ग है। गीता हिन्दू धर्म का ग्रंथ नहीं, वह विश्व-मानवता का सार्वभौमिक दर्शन है । गांधीजी से लेकर आइंस्टाइन, थोरो तक सभी ने इसे जीवन का प्रकाश-पुंज माना। आज जब चारों ओर तनाव, अवसाद, नैतिक पतन और मूल्यों का ह्रास दिख रहा है, गीता कहती है। “योगस्थः कुरु कर्माणि” अर्थात स्थित होकर कर्म करो। यह बात हरियाणा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के मीडिया को-ऑर्डिनेटर अशोक छाबड़ा ने गीता महोत्सव के दूसरे दिन सांयकालीन संध्या में बतौर मुख्यअतिथि बोलते हुए कही। इस अवसर पर डीआईपीआरओ कृष्ण कुमार, सीडीपीओ संतोष याादव, पीआईजी के प्राचार्य जे गहलावत, राजेश स्वरूप शास्त्री, रंगकर्मी रमेश भनवाला, रामप्रसाद शास्त्री, सीमा मलिक, हर्ष रेढू, किरण बाला सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।
मीडिया कोऑर्डिनेटर अशोक छाबडा ने गीता महोत्सव ने दीप प्रज्वलित कर महोत्सव का शुभारंभ किया तथा प्रदर्शनी का अवलोकन किया। मुख्य अतिथि ने इस अवसर पर आयोजित पवित्र हवन में पूर्णाहुति अर्पित कर आमजन के लिए मंगलकामना की। प्रदर्शनी से लेकर मंचीय प्रस्तुतियों तक, हर आयाम में अध्यात्म, परंपरा और नवाचार का सुंदर मेल दिखाई दिया। उन्होंने कहा कि गीता के योगः कर्मसु कौशल और समत्वं योग उच्यते जैसे उपदेश आज के युग में अधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह हमें चुनौतियों के बीच संतुलित रहने, सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने और राष्ट्रहित में पूर्ण समर्पण के साथ कार्य करने की प्रेरणा देते हैं। यदि समाज गीता के मूल्यों को जीवन में उतार ले, तो परिवार, संस्था, प्रशासन और राष्ट्र, सभी में उत्कृष्टता स्वतः स्थापित हो जाती है। उन्होंने कहा कि मोक्षदा एकादशी, गीता जयंती, वह पावन दिवस जब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से समस्त मानवता को श्रीमद्भगवद्गीता का अमर सन्देश दिया। कुरुक्षेत्र की रणभूमि में जब अर्जुन मोहग्रस्त होकर शस्त्र त्यागने को उद्यत हुए, तब भगवान ने गीता के 700 श्लोकों में समस्त वेदों-उपनिषदों का सार दे दिया।
मीडिया कोऑर्डिनेटर अशोक छाबड़ा ने कहा कि निष्काम कर्मयोग ही आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। गीता सिखाती है । “समत्वं योग उच्यते” दृ जीवन की सफलता-असफलता, लाभ-हानि, सुख-दुःख में समान भाव से देखो। आज का युवा यदि “यदा यदा हि धर्मस्य३” को आत्मसात कर ले तो वह स्वयं बदल सकता है और समाज को भी बदल सकता है।
-भारतीय संस्कृति और गीता:
अशोक छाबड़ा ने कहा कि गीता हमारी संस्कृति का हृदय है । जिसमें कर्म, धर्म, त्याग, भक्ति और ज्ञान का अद्भुत समन्वय है। गीता हमें “वसुधैव कुटुम्बकम्” का भाव देती है । पूरा विश्व एक परिवार है। हमें गर्व है कि हम उस भूमि के वासी हैं जहाँ भगवान स्वयं अवतरित होकर मानव को मार्ग दिखाते हैं।
– भारतीय संस्कृति का गर्व और कृतज्ञताः
हम वो भाग्यशाली लोग हैं जिनकी मिट्टी में भगवान ने स्वयं पैर रखे जिनके कण-कण में गीता की गूँज है । जिनके पूर्वजों ने “यदा यदा हि धर्मस्यः” को जीया है। आज हमारा कर्तव्य है कि हम गीता को पूजा की थाली से उतारकर अपने जीवन की हर सांस में उतारें।
– नट-खट बंशीवाले गोकुल के नामक कृष्ण भजन पर झुम उठे श्रोताः
गीता महोत्सव में उस समय श्रोता झूम उठे जब डीआईपीआरओ कृष्ण कुमार ने नट-खट बंशीवाले गोकुल के नामक भगवान कृष्ण के भजन की प्रस्तुति दी। महोत्सव में आयोजित भजन संध्या कार्यक्रम में भगवान श्रीकृष्ण के भजनों पर श्रोताओं ने जमकर धुनों का आनंद लिया। संध्या का संपूर्ण वातावरण भक्ति, संगीत और आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर हो गया। कार्यक्रम में शहर व आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उत्साह के साथ झूम उठे। इसी प्रकार करनाल से आए लोक कलाकार सुमेर पाल ने लोकप्रिय और भक्तिमय भजनों का सुमधुर प्रस्तुतीकरण किया गया, जिन पर उपस्थित जनसमूह भाव-विभोर हो उठा। तालियों की गड़गड़ाहट और “जय श्रीकृष्ण” के उद्घोष से पूरा परिसर गूंज उठा। कार्यक्रम में डीआईपीआरओ ने कहा कि श्रीकृष्ण भक्ति मन को शांति प्रदान करती है और जीवन में सदाचार, कर्तव्य और प्रेम का संदेश देती है। ऐसी सांस्कृतिक-आध्यात्मिक प्रस्तुतियां समाज को एकता और सकारात्मक ऊर्जा से जोड़ती हैं। इस प्रकार की भजन संध्याओं का उद्देश्य समाज में आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ाना और युवाओं को भारतीय संस्कृति से जोड़ना है।


