गीता महोत्सव कार्यक्रम धर्म, संस्कृति और आध्यात्मिकता का भव्य संगम,गीता की शिक्षाएं आंतरिक चेतना में लाती हैं परिवर्तन : अशोक छाबड़ा
-श्री लज्जा राम गुरुकुल विद्यापीठ पांडू पिंडारा में हुआ श्रीमद्भगवद्गीता संगोष्ठी का आयोजन


-युवा पीढ़ी के लिए गीता का संदेश अत्यंत आवश्यक: एसडीएम सत्यवान मान
-श्रीमद्भगवद्गीता के महत्व पर धार्मिक संस्थानों के प्रवक्ताओं ने साझा किए विचार जींद, 30 नवंबर। श्रीमद्भगवद्गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक और दार्शनिक जीवन-दृष्टि है, जो व्यक्ति की अंतरिक्ष चेतना तक को प्रभावित करती है।
गीता जीवन में कर्तव्य, नैतिकता, धैर्य और संतुलन की प्रेरणा देती है। गीता का अध्ययन आमजन के लिए मानसिक शक्ति और सकारात्मक सोच का स्रोत है। यह कथन अशोक छाबड़ा ने गीता महोत्सव के उपलक्ष्य में श्री लज्जा राम गुरूकुल विद्यापीठ में श्रीमद्भगवद्गीता संगोष्ठी के आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत कर व्यक्त किए। इस अवसर पर जींद के एसडीएम सत्यवान मान ने विशिष्ठ अतिथि के रूप में शिरकत की । संगोष्ठी में सनातन धर्माचार्य प. देवीदयाल आचार्य,श्री गोशाला के संस्थापक स्वामी सतबीरानंद, श्री महंत राजेश स्वरूप जी महाराज, डाॅ कांता शर्मा तथा अन्य विद्वान श्रोता व गुरूकुल के विद्यार्थी मौजूद रहे।
मीडिया को-आॅर्डिनेटर अशोक छाबड़ा ने कहा कि श्रीमद्भगवद गीता विश्व का शाश्वत और सार्वकालिक ज्ञान का भंडार है, जिसके उपदेश न केवल भारत बल्कि विश्व के अनेक देशों में जीवन प्रबंधन, नेतृत्व, कर्तव्यपरायणता और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अपनाए जा रहे हैं। गीता मनुष्य को कर्मयोग का उपदेश देती है, जिसका अर्थ है परिणाम की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य का निष्ठापूर्वक पालन करना। यह ग्रंथ हमें स्थित प्रज्ञ बनने की प्रेरणा भी देता है, जिससे व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी अपने मन को स्थिर, शांत और संतुलित रख पाता है। आधुनिक समय में जब तनाव, भ्रम, प्रतिस्पर्धा और संघर्ष हमारे जीवन का हिस्सा बन चुके हैं, ऐसे में गीता का ‘निष्काम कर्म’ और ‘अध्यात्म आधारित जीवन’ अत्यंत आवश्यक सिद्ध होता है। यह हमें न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि जीवन को सकारात्मकता, स्पष्टता और आत्मबल के साथ जीने की दिशा भी दिखाता है।
संगोष्ठी में पंहुचे जींद के एसडीएम सत्यवान मान ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि युवा अवस्था जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण चरण है, जिसे सही निर्णय-क्षमता, संतुलित दिनचर्या और स्पष्ट लक्ष्यों के साथ दिशा दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह वही समय है जब विद्यार्थी अपने व्यक्तित्व, करियर और जीवन-दृष्टि की मजबूत नींव तैयार कर सकते हैं। अपने संबोधन में उन्होंने आलस्य को मनुष्य के विकास में बाधक प्रमुख तत्व बताते हुए इसके त्याग की प्रेरणा दी। उन्होंने संस्कृत भाषा की विशेषताओं और भारतीय ज्ञान परंपरा में उसकी प्रतिष्ठा का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि गीता कर्मयोग की शिक्षा देती है, अर्थात किसी भी परिस्थिति में कर्म से भागना नहीं चाहिए और अपने प्रयासों में आसक्ति न रखकर कर्तव्य का पालन करना चाहिए। उन्होंने विद्यार्थियों को अध्ययन, आत्म अनुशासन और लक्ष्य साधना में निरंतरता बनाए रखने का आग्रह किया तथा सकारात्मक विचारों और सत्कर्मों को दैनिक जीवन में अपनाने की सलाह दी।
सनातन धर्माचार्य प. देवीदयाल आचार्य ने कहा कि श्रीमद्भगवद गीता वास्तव में आधुनिक मनुष्य के लिए जीवन प्रबंधन का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है, जिसमें मानसिक शांति, सकारात्मक सोच, निर्णय क्षमता, नेतृत्व कला और आत्मबोध जैसे विषयों का अद्वितीय समाधान मिलता है। उन्होंने कहा कि देश व प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में गीता जयंती महोत्सव को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है। उनके प्रयासों से गीता महोत्सव केवल धार्मिक अनुष्ठान न रहकर एक सांस्कृतिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक अभियान बन चुकी है, जिसे विश्व के अनेक देश अत्यंत आदर के साथ देखते हैं। उन्होंने जिला प्रशासन को इस भव्य आयोजन के लिए बधाई देते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रम समाज में आध्यात्मिक चेतना का संचार करते हैं, युवाओं को अपनी संस्कृति से जोड़ते हैं और समाज को एकता व सद्भाव के संदेश से ओतप्रोत करते हैं।
श्री कृष्ण गौशाला के संस्थापक स्वामी सतबीरानंद ने कहा कि किसी वस्तु को संवारने के लिए उसके रूप में परिवर्तन लाता है, उसी प्रकार गीता की शिक्षाएं आंतरिक चेतना में परिवर्तन लाती हैं। मानव जीवन को “एयरक्राफ्ट” बताते हुए उन्होंने कहा कि इसकी वास्तविक उड़ान तभी संभव है जब गीता के मार्गदर्शन को व्यवहार में लाया जाए। अर्जुन की दुविधाओं को आधुनिक युवा की उलझनों से जोड़ते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि गीता जीवन की दिशा देने वाला कालजयी मार्गदर्शन है। गुरूकुल के संचालक श्री महंत राजेश स्वरूप जी महाराज ने उपस्थित अतिथियों का स्वागत किया । उन्होंने छात्रओं को सम्बोंधित करते हुए सरल उदाहरणों के माध्यम से समझाया कि जैसे मौसम के बदलते तापमान में समायोजन करके जीवन सहजता से चलता है, उसी प्रकार जीवन में सुख-दुःख भी अस्थायी हैं और इन्हें धैर्यपूर्वक स्वीकार करना गीता की प्रमुख शिक्षाओं में से एक है। चंचल मन को साधना, सकारात्मक प्रयासों को निरंतर जारी रखना और हर परिस्थिति में दिव्य उपस्थिति को अनुभव करना जीवन की सफलता के मुख्य आधार हैं। मन यदि अनियंत्रित हो तो सबसे बड़ा बाधक बन जाता है, और यदि नियंत्रित हो जाए तो सबसे बड़ा साथी बन जाता है। गीता में बताए गए अभ्यास और वैराग्य के माध्यम से मन को स्थिर करने की आवश्यकता पर विशेष जोर दिया गया।
डाॅ कांता ने बताया कि गीता आत्म-प्रबंधन सिखाने वाला महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है, जो हमें अपने आप को समझने, अपने कर्मों में संकल्प और अपने जीवन को व्यवस्थित करने की शिक्षा देता है। उन्होंने 18वें अध्याय का उदाहरण देते हुए समझाया कि किसी भी कार्य के लिए पांच कारण होते हैं। अधिष्ठान, कर्ता, करण, प्रयास और दैव और केवल अपने कर्मों को ही अपना पूरा श्रेय न दें। इस दृष्टिकोण से व्यक्ति अपने जीवन में फल की चिंता से मुक्त होकर कर्मयोग अपनाता है। उन्होंने छात्राओं को प्रेरित किया कि वे गीता को पढ़ें, सुनें और जीवन में उतारें। उनका संदेश थारू ष्जियो गीता के संग, सीखो जीने का ढंग, ना घबराओ, जीवन अपना न व्यर्थ गवाया जग को छोड़ो, ना हरि को बिसारो।


