Haryana: झज्जर जिले के बहादुरगढ़ में जिंदा व्यक्ति को दौड़ाया, 25 साल पहले मरे व्यक्ति के नाम पर हो गई रजिस्ट्री
Haryana के झज्जर जिले के बहादुरगढ़ में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। जहां एक जीवित व्यक्ति को अपनी जायज संपत्ति के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं, वहीं 25 साल पहले मर चुके व्यक्ति को जिंदा दिखाकर उसकी संपत्ति की रजिस्ट्री कर दी गई। यह पूरा मामला फ्रेंड्स कॉलोनी की गली नंबर-5 में स्थित 190 गज के प्लॉट से जुड़ा है।
प्लॉट मालिक की मृत्यु के 25 साल बाद हुई रजिस्ट्री
यह प्लॉट 1987 में श्रीराम पुत्र देवतराम ने खरीदा था। श्रीराम अविवाहित थे और अपने भतीजे प्रेमचंद के साथ रहते थे। जुलाई 1999 में श्रीराम ने अपनी वसीयत तैयार करवाई थी, जिसमें उन्होंने अपना प्लॉट प्रेमचंद के बेटे ललित मोहन के नाम कर दिया। इसके कुछ महीनों बाद, 9 अक्टूबर 1999 को श्रीराम का निधन हो गया। हालांकि, यह वसीयत पंजीकृत नहीं थी, बल्कि सिर्फ एक नोटरी द्वारा प्रमाणित थी।
अदालत ने ललित मोहन के पक्ष में दिया फैसला
ललित मोहन ने वसीयत को कानूनी रूप से मान्य कराने के लिए अदालत में याचिका दायर की। इस पर दिसंबर 2024 में अदालत ने ललित मोहन के पक्ष में निर्णय देते हुए डिक्री जारी कर दी। इसके बाद ललित मोहन ने तहसीलदार को अपनी संपत्ति अपने नाम कराने के लिए आवेदन दिया। हालांकि, तहसीलदार ने इस आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि रजिस्ट्री के लिए निर्धारित शुल्क का भुगतान किया जाना आवश्यक है।
तहसीलदार के फैसले के बाद शुरू हुआ फर्जीवाड़ा
तहसीलदार के इस फैसले के बाद धोखाधड़ी का खेल शुरू हुआ। महज 20 दिन बाद, उसी प्लॉट की रजिस्ट्री श्रीराम को जीवित दिखाकर कर दी गई, जबकि श्रीराम की मृत्यु 25 साल पहले हो चुकी थी। इस दौरान ललित मोहन अपने अधिकारों के लिए तहसील के चक्कर काटते रहे, जबकि दिल्ली निवासी एक ठग हर्षपाल ने फर्जीवाड़ा कर रजिस्ट्री करवा ली। इस रजिस्ट्री में दिल्ली के ही सोनू और हवा सिंह नाम के व्यक्ति गवाह बनाए गए।
प्रॉपर्टी आईडी में दर्ज था गलत मोबाइल नंबर
इस धोखाधड़ी में नगर परिषद के अधिकारियों की लापरवाही भी सामने आई। श्रीराम की प्रॉपर्टी आईडी में उनका नाम तो सही दर्ज था, लेकिन मोबाइल नंबर किसी और व्यक्ति का था। ललित मोहन ने 14 फरवरी को नगर परिषद में आवेदन देकर मोबाइल नंबर सही करने की मांग की थी, लेकिन नगर परिषद ने सुधार करने के बजाय इसे विवादित घोषित कर दिया और 19 फरवरी को फाइल बंद कर दी।

इसके बाद, उसी गलत मोबाइल नंबर का उपयोग कर एनओसी (No Objection Certificate) ली गई और फर्जी रजिस्ट्री कर दी गई।
सरकारी विभागों की लापरवाही उजागर
इस पूरे मामले में सरकारी विभागों की भारी लापरवाही सामने आई। यदि नगर परिषद समय रहते प्रॉपर्टी आईडी में दर्ज गलत मोबाइल नंबर को सही कर देती, तो कोई दूसरा व्यक्ति उस प्लॉट की एनओसी नहीं ले पाता। पीड़ित ललित मोहन ने समय पर सभी विभागों में आवेदन दिया था, लेकिन अधिकारियों की अनदेखी के चलते ठगों ने बड़े फर्जीवाड़े को अंजाम दे दिया।
पीड़ित को न्याय की आस
इस मामले में पीड़ित ललित मोहन लगातार न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने प्रशासन से मामले की निष्पक्ष जांच और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि यदि अधिकारियों ने उनकी शिकायत पर समय रहते ध्यान दिया होता, तो यह धोखाधड़ी रोकी जा सकती थी।
बड़ी साजिश या प्रशासनिक लापरवाही?
यह मामला प्रशासनिक लापरवाही का एक बड़ा उदाहरण है। नगर परिषद और तहसील कार्यालय की ढिलाई ने एक फर्जीवाड़े को आसान बना दिया। फर्जी एनओसी लेकर प्लॉट की रजिस्ट्री करना और मृत व्यक्ति को जीवित दिखाकर उसका नाम दस्तावेजों में दर्ज करना, भ्रष्टाचार की पोल खोलता है।
क्या होनी चाहिए कार्रवाई?
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दोषियों पर कड़ी कार्रवाई: इस मामले में शामिल सभी दोषियों – नगर परिषद के अधिकारियों, तहसील कर्मचारियों और फर्जीवाड़ा करने वालों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
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प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन में पारदर्शिता: प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए मोबाइल नंबर और पहचान पत्र का सत्यापन अनिवार्य किया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह के फर्जीवाड़े न हों।
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पीड़ित को जल्द न्याय: ललित मोहन को उनकी संपत्ति वापस दिलाने और दोषियों को सजा दिलाने के लिए प्रशासन को शीघ्र कार्रवाई करनी चाहिए।
Haryana के बहादुरगढ़ में हुआ यह फर्जीवाड़ा सरकारी तंत्र की लापरवाही और भ्रष्टाचार का गंभीर उदाहरण है। मृत व्यक्ति को जीवित दिखाकर संपत्ति की रजिस्ट्री करना केवल एक व्यक्ति की धोखाधड़ी नहीं, बल्कि सिस्टम की खामी को भी दर्शाता है। सरकार को इस मामले में कठोर कदम उठाने चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति इस तरह का फर्जीवाड़ा न कर सके।

