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Bhopal Gas Tragedy: सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला और जहरीले कचरे के निपटान का मुद्दा

Bhopal Gas Tragedy, जिसे दुनिया की सबसे भयानक औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है, 2-3 दिसंबर 1984 की रात को हुई थी। इस त्रासदी ने हजारों लोगों की जान ले ली और लाखों लोगों को अपंग बना दिया। इस हादसे के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के कारखाने से निकलने वाले जहरीले कचरे का निपटान वर्षों से एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि यह जहरीला कचरा मध्य प्रदेश के धार जिले के पीथमपुर क्षेत्र में स्थानांतरित कर नष्ट किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस बी. आर. गवई और ए. जी. मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है। इस समिति में नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI), नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (NGRI) और सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के विशेषज्ञ शामिल थे। पीठ ने कहा कि यदि किसी पक्ष को इस निर्णय से आपत्ति है, तो वे हाईकोर्ट का रुख कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि 377 टन खतरनाक कचरे को पीथमपुर के औद्योगिक क्षेत्र में स्थित एक संयंत्र में स्थानांतरित किया गया है, जो भोपाल से लगभग 250 किलोमीटर और इंदौर से 30 किलोमीटर दूर है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस कचरे के निपटान के लिए 29 फरवरी को एक ट्रायल रन किया जाएगा।

Bhopal Gas Tragedy: सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला और जहरीले कचरे के निपटान का मुद्दा

भोपाल गैस त्रासदी: एक भयावह रात की कहानी

2-3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ। इस जहरीली गैस ने कुछ ही घंटों में हजारों लोगों की जान ले ली और पांच लाख से अधिक लोग इससे प्रभावित हुए।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस हादसे में तत्कालीन 5,479 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन गैर-सरकारी संगठनों और अन्य रिपोर्ट्स के अनुसार यह संख्या 15,000 से 20,000 के बीच हो सकती है। वहीं, इस त्रासदी के प्रभाव से अब भी हजारों लोग स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे हैं।

भोपाल गैस त्रासदी के प्रभाव

  1. मानवीय क्षति: इस हादसे ने हजारों लोगों की जान ले ली और लाखों लोगों को स्थायी शारीरिक और मानसिक विकलांगता दे दी।
  2. पर्यावरणीय क्षति: जहरीली गैस के असर से भोपाल के जल स्रोत, मिट्टी और हवा प्रदूषित हो गए। इसका असर आज भी देखने को मिलता है।
  3. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: इस हादसे के कारण भोपाल की अर्थव्यवस्था को गहरा आघात लगा और प्रभावित परिवारों को आज तक न्याय की तलाश है।

जहरीले कचरे के निपटान का मुद्दा

इस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में 377 टन जहरीला कचरा जमा हो गया था, जिसका सही ढंग से निपटान नहीं किया गया। वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कचरे के निपटान का आदेश दिया था, लेकिन विभिन्न विवादों और स्थानीय विरोधों के चलते इसे अमल में लाने में कठिनाइयाँ आईं।

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अब, हाईकोर्ट और विशेषज्ञ समितियों की सिफारिशों के आधार पर इसे पीथमपुर में नष्ट करने की योजना बनाई गई है। हालांकि, इस फैसले का कई संगठनों और पर्यावरणविदों द्वारा विरोध किया जा रहा है। उनका कहना है कि इस कचरे के निपटान से पीथमपुर और आसपास के क्षेत्रों के पर्यावरण और जनस्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

प्रभावित परिवारों का संघर्ष

भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित परिवारों को अब भी न्याय और उचित मुआवजे की तलाश है। वर्षों से इस मामले में कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही है, लेकिन अब तक कोई संतोषजनक समाधान नहीं निकला है। यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन सीईओ वारेन एंडरसन को इस हादसे का मुख्य दोषी माना गया था, लेकिन वह भारत नहीं आया और अमेरिका में उसकी मृत्यु हो गई।

सरकारी और कानूनी प्रयास

सरकार द्वारा प्रभावितों को मुआवजा देने और पुनर्वास योजनाएं लागू करने की कई कोशिशें की गईं, लेकिन यह आज भी अपर्याप्त साबित हो रही हैं। केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश सरकार ने कई पुनर्वास योजनाएँ शुरू कीं, लेकिन प्रभावित लोगों के अनुसार, वे अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरीं।

क्या होना चाहिए आगे का रास्ता?

  1. उचित निपटान प्रणाली: जहरीले कचरे के निपटान के लिए वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सुरक्षित समाधान अपनाया जाना चाहिए।
  2. मुआवजा और पुनर्वास: पीड़ितों के लिए उचित मुआवजा और पुनर्वास योजनाओं को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
  3. सख्त औद्योगिक सुरक्षा कानून: भविष्य में इस तरह की त्रासदी न हो, इसके लिए औद्योगिक सुरक्षा कानूनों को और कठोर बनाया जाना चाहिए।
  4. जनता की भागीदारी: इस मुद्दे से प्रभावित लोगों और पर्यावरणविदों की राय को ध्यान में रखते हुए निपटान प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए।

भोपाल गैस त्रासदी भारतीय इतिहास की सबसे भयावह औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक है, जिसके दंश को आज भी लाखों लोग झेल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला एक महत्वपूर्ण मोड़ है, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस फैसले के कार्यान्वयन से कोई नई पर्यावरणीय समस्या उत्पन्न न हो। सरकार, न्यायपालिका और समाज को मिलकर इस त्रासदी से जुड़े सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि प्रभावितों को न्याय मिले और भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

Khabar Abtak

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