राजनीति में कभी भी, कुछ भी हो सकता है। एक बार फिर साबित हो गया। एनसीपी के अजित दादा पवार की निष्ठा तो लम्बे समय से संदिग्ध रही है। लेकिन जो प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल और दिलीप वसले पाटील रविवार सुबह तक शरद पवार के सबसे ख़ास समझे जाते थे वे भी पार्टी छोड़कर और शरद पवार को धता बताते हुए भाजपा से जा मिले।
यह सब कितने गुप्त रूप से हुआ होगा इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि राजनीति के चाणक्य समझे जाने वाले शरद पवार को कानोकान खबर नहीं पड़ी। कुछ लोग राजभवन पहुँच रहे हैं, इस बारे में असलियत का पता लगाने के लिए शरद पवार ने जिन दिलीप वसले पाटील को फ़ोन किया, कुछ देर बाद पता चला कि खुद पाटील ने भी मंत्री पद की शपथ ले ली है।
दरअसल, महाराष्ट्र में जो राजनीतिक घटनाक्रम हुआ, वह शिवसेना की तोड़फोड़ से काफ़ी मिलता जुलता है। हालाँकि शिवसेना के टूटते वक्त विधायकों को लम्बे समय तक यहाँ-वहाँ छिपाया गया था, लेकिन एनसीपी के मामले में ऐसा नहीं हुआ। एकनाथ शिंदे ने जब अलग शिवसेना की योजना बनाई तब पार्टी में एक तरह से बाप-बेटे यानी उद्धव ठाकरे और उनके बेटे ही रह गए थे।
वैसे ही एनसीपी में भी अब बाप-बेटी यानी शरद पवार और सुप्रिया सुले ही रह गई हैं। जिस तरह उद्धव के साथ संजय राउत खड़े रहे वैसे ही शरद पवार के साथ जयंत पाटील खड़े हैं। जिस तरह उद्धव गुट से शिवसेना और उसका निशान तक छिन गया वही हालात एनसीपी में भी दिखाई दे रहे हैं। चालीस विधायक साथ होने का दावा कर रहे अजित पवार भी एनसीपी पर वैसे ही क़ब्ज़ा करने को उतारू हैं जैसे शिंदे ने शिवसेना पर किया था। क़ानूनी दांव पेंच शायद पहले ही पूरे कर लिए गए हैं।
अजित दादा को क्यों तोड़ा गया, इसकी कई वजह हैं। पहली तो यह कि 2019 में अल सुबह देवेन्द्र फडनवीस और अजित दादा पवार की जो शपथ हुई थी, और आख़िर दो ही दिन में नाकाम हो गई थी, उसका बदला शरद पवार से लेना ही था। दूसरी वजह है भ्रष्टाचार। अजित दादा सहित एनसीपी के कई बड़े नेताओं पर भाजपा की ओर से भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे थे।
दरअसल, परोक्ष रूप से ये आरोप इन नेताओं के घर- दफ़्तरों में ईडी या सीबीआई भेजे जाने की धमकी के रूप में लिए जा रहे थे। संभवतया सभी बड़े नेताओं का भाजपा की शरण में जाने की सबसे बड़ी वजह यही है। जैसा कि विपक्ष कह रहा है कि भाजपा की वाशिंग मशीन में जाते ही हर नेता पाक- साफ़ हो जाता है, अब इन एनसीपी नेताओं पर लगता है कोई कार्रवाई नहीं होने वाली है।
तीसरी वजह है एक होते विपक्ष के मनोबल को तोड़ना। चूँकि विपक्षी एकता की रणनीति में सबसे ज़्यादा अनुभवी शरद पवार ही हैं, इसलिए सबसे पहले उन्हें ही झटका दिया गया है। हालाँकि शरद पवार ने इस घटनाक्रम के बाद कहा है कि पार्टी उन्हीं ने बनाई थी, और उसे फिर से खड़ा करने की ताक़त वे आज भी रखते हैं।
वे राज्यभर में घूम- घूमकर लोगों का समर्थन जुटाएँगे, और नए नेता खड़े कर देंगे। हो सकता है इनके प्रति सहानुभूति लहर पैदा हो जाए और वे तमाम राजनीतिक चालों को धराशायी कर दें लेकिन यह आने वाला समय ही तय करेगा।
एनसीपी के जिन नौ नेताओं ने रविवार को मंत्री पद की शपथ ली, उनके साथ शपथ समारोह में प्रफुल्ल पटेल का मौजूद रहना पवार के लिए शायद सबसे बड़ा झटका है। ये वही प्रफुल्ल पटेल हैं जिन्हें हाल के साँगठनिक फेरबदल में शरद पवार ने अजित दादा से भी बड़ा और अपनी बेटी सुप्रिया के बराबर वाला पद दिया था। कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर।
पार्टी के अंदरूनी हालात की बात करें तो बेटी सुप्रिया को ज़रूरत से ज़्यादा तवज्जो देने के कारण बड़े नेता अंदर ही अंदर नाराज़ चल रहे थे। अजित दादा पवार तो पहले से ही नाराज़ थे। बड़े नेताओं की नाराज़गी को अजित दादा ने हवा दी और सबको इकट्ठा करके बड़ा दांव खेल लिया।