देश में कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने में एम.एस. स्वामीनाथन का महत्वपूर्ण योगदान – अतिरिक्त उपायुक्त लक्षित सरीन
कम कीटनाशक का प्रयोग करके भी उच्च गुणवत्ता की खेती की जा सकती है

सोनीपत, (अनिल जिंदल), 07 अगस्त। देश में कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले भारतीय हरित क्रांति के जनक प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन के जयंती पर वीरवार को जिला परिषद सभागार में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा कृषि के क्षेत्र में कम कीटनाशक का प्रयोग कर उच्च गुणवत्ता की पैदावार करने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें अतिरिक्त उपायुक्त लक्षित सरीन द्वारा प्रोफेसर एस स्वामीनाथन के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भारतीय हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 में तमिलनाडु के कुंभकोणम में हुआ। मद्रास विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद कैंब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। कृषि के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए 1967 में पद्म भूषण, 1972 में पद्म विभूषण, व 2004 में भारत रत्न से प्रोफेसर एस स्वामीनाथन को सम्मानित किया गया। कृषि के क्षेत्र में उनके द्वारा दिए गए क्रांतिकारी बदलाव के योगदान के बारे में जिले के किसानों को अवगत करवाया गया।
अतिरिक्त उपायुक्त ने बताया कि भारत में हरित क्रांति को लाने वाले प्रोफेसर एस स्वामीनाथन ने ही कृषि के क्षेत्र में जो क्रांतिकारी बदलाव किया उसी का परिणाम आज हम सबके सामने है | आजादी के 78 वर्ष पूर्ण होने के बाद आज भी कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार स्तंभ है।
कीटनाशकों के कई विकल्प उपलब्ध हैं, जिनमें जैविक कीट नियंत्रण, फसल चक्रण, और प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग शामिल है। इसके अतिरिक्त, कुछ कीटों को नियंत्रित करने के लिए पक्षियों और अन्य लाभकारी जीवों को आकर्षित करना भी एक प्रभावी तरीका है।
जैविक कीट नियंत्रण
इसमें उपयोगी कीटों, जैसे लेडीबर्ड्स और परजीवी ततैया का उपयोग शामिल है, जो हानिकारक कीटों को खाते हैं या उन परजीवी होते हैं।
फसल चक्रण
एक ही खेत में लगातार एक ही फसल उगाने से कीटों और बीमारियों का जमाव हो सकता है। फसल चक्रण, जिसमें विभिन्न प्रकार की फसलें शामिल होती हैं, इस समस्या को कम करने में मदद कर सकता है।
प्राकृतिक कीटनाशक -नीम का तेल, पाइरेथ्रम, और रोटेनोन जैसे प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
पक्षी और अन्य लाभकारी जीवों को आकर्षित करना पक्षी, चमगादड़ और अन्य लाभकारी जीव कीटों को खाते हैं, इसलिए उनके लिए अनुकूल वातावरण बनाना फायदेमंद हो सकता है।
यांत्रिक नियंत्रण
कीटों को हाथ से पकड़ना, जाल लगाना, या कीटनाशक स्प्रेयर का उपयोग करना।
खेत की सफाई – खेत से खरपतवार और पौधों के अवशेषों को हटाना, जो कीटों के लिए प्रजनन स्थल हो सकते हैं।
फेरोमोन जाल -फेरोमोन जाल कीटों को आकर्षित करते हैं और उन्हें फंसाते हैं, जिससे उनकी आबादी को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
स्वस्थ पौधों का विकास – स्वस्थ पौधे कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं।
कीटनाशक साबुन व्यावसायिक रूप से उपलब्ध कीटनाशक साबुन का उपयोग किया जा सकता है।
बोरिक एसिड और बोरेट्स – ये प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले यौगिक हैं जो कीड़ों को मारने के लिए उपयोग किए जा सकते हैं।
पौधों का रक्षक -पौधों को पत्ती खाने वाले कैटरपिलर, कृमि और अन्य कीड़ों से बचाने के लिए पौधों का रक्षक का उपयोग किया जा सकता है।
किसान कृषि यंत्रों को खरीदने के लिए सब्सिडी का लाभ उठाएं
– उप निदेशक डॉ . पवन शर्मा
उपनिदेशक डॉ पवन शर्मा ने बताया कि किसान कृषि यंत्रों को खरीदने के लिए सरकार द्वारा दी जा रही 50 से 75% सब्सिडी का लाभ उठाएं। जिससे कृषि के क्षेत्र में उन्नत तकनीक के माध्यम से पैदावार में वृद्धि होती है, व समय की बचत होती है। उपनिदेशक महोदय ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि किसानों को यूरिया का कम प्रयोग करके प्राकृतिक खेती की तरफ लौटना चाहिए। जिससे मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव से बचा जा सकता है,व स्वस्थ समाज की स्थापना हो सकती है उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला का लाभ उठाकर किसान भाई अपने साथी किसानों को भी जागरूक कर सकते हैं।
इस अवसर पर डॉ राहुल, जगदीश कौशिक, ए ए ई डॉ. नवीन हुड्डा, डॉक्टर संदीप वर्मा, डॉक्टर संदीप साइंटिस्ट केवीके, डॉक्टर प्रमोद तोमर साइंटिस्ट मेरठ, कृषि विभाग के सभी अधिकारी व कर्मचारी व जिले के विभिन्न गांव से आए किसान उपस्थित रहे।