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भारत में 16% बुजुर्ग महिलाएं होती हैं प्रताड़ित अपने ही बेटों बहुओं द्वारा

60 से 90 साल उम्र की 7911 बुजुर्ग महिला पर एक सर्वे किया। इसमें सामने आया कि 16% महिलाएं अपने ही बच्चों से प्रताड़ित हुईं। इस सर्वे में 20 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों की महिलाएं शामिल थीं। इसमें 50% महिलाओं के साथ मारपीट हुई। 46% का घर में अनादर होता है।

2050तक भारत में बुजुर्गों की आबादी 31.9 करोड़ हो जाएगी। 2011 में हुई जनगणना के अनुसार इनकी संख्या 10.4 करोड़ थी। बुजुर्गों की आबादी बढ़ने के साथ-साथ उनकी सबसे बड़ी जरूरत पीछे छूटती जा रही है।

एक वक्त होता है जब पेरेंट्स अपने बच्चों को दुनियाभर की खुशी देना चाहते हैं। भले ही उनकी जेब खाली हो, पेट में भूख से मरोड़ उठे, खुद चाहे अच्छा न पहनें, लेकिन वे अपने जिगर के टुकड़े की हर ख्वाहिश और फरमाइश पूरी करने में जुटे रहते हैं, लेकिन जब बूढ़े माता-पिता को बच्चों के साथ की जरूरत होती है तो वे अपनी जिम्मेदारियों से अनजान रिश्ते में अजनबियों की तरह व्यवहार करने लगते हैं।

बुढ़ापा सूखे पत्तों की तरह है। यह जिंदगी का वह पड़ाव है जब पुराने पत्ते नई काेंपलों को रास्ता देना शुरू करते हैं और खुद झड़ने लगते हैं। ऐसे में अगर अपनी औलाद बुढ़ापे की लाठी बन जाए तो झुर्रियों से भरा चेहरा खुश रहता है, लेकिन औलाद ही दुश्मन बन जाए तो बची-खुची जिंदगी गुजारना मुश्किल हो जाता है।

केस 1- दिल्ली के पॉश इलाके में एक बुजुर्ग की 9 करोड़ की प्रॉपर्टी थी। उनके 3 बेटे थे और तीनों के बीच 3 अलग-अलग फ्लोर बंटे हुए थे। गर्मी की छुट्टी हुई तो तीनों बेटे अपने परिवार के साथ घूमने निकल गए। जबकि बुजुर्ग ने उनसे गुहार लगाई थी कि बच्चे उन्हें भी साथ ले जाएं।

3 बेटे-बहू, पोता-पोती होने के बाद भी वह दिनभर अकेले ही कमरे में बैठे रहते। दरअसल उनके बेटे उन पर प्रॉपर्टी अपने नाम करने का दबाव बना रहे थे। बेटे घूमने गए तो परेशान पिता ने 9 करोड़ की प्रॉपर्टी 7 करोड़ में बेच दी और खुद वृद्धाश्रम चले गए।

केस 2- जम्मू में रहने वाले एक बुजुर्ग की दिल्ली में लाश मिली। उनकी एक्सीडेंट में मौत हुई थी। सब इसे एक्सीडेंट ही समझ रहे थे, लेकिन जज को शक हुआ कि कहीं कोई दिक्कत है और उन्होंने जांच के आदेश दिए। जांच में पता चला कि बुजुर्ग व्यक्ति अपने बच्चों से परेशान होकर घर से निकले थे। वह इतने दुखी थे कि शॉक में चले गए। तभी उनका एक्सीडेंट हुआ।

केस 3- बनारस की रहने वाली 80 साल की महिला रोज अपने 3 लड़कों से पिटती थी। उनके हस्बैंड सीएमओ रहे, जिनकी 2012 में मृत्यु हो गई। उनके जाने के बाद सारी प्रॉपर्टी पत्नी के नाम हो गई। घर के साथ-साथ उनकी कई प्रॉपर्टी रेंट पर है। बेटे मां से उनका हक छीनना चाहते हैं। जब वह पेपर साइन करने से मना कर देतीं तो बेटे हाथ उठाते हैं। वह बुजुर्ग महिला आज डिप्रेशन से गुजर रही हैं।

बुजुर्ग पेरेंट्स के साथ ऐसे हादसे रोज देखने और सुनने को मिलते हैं, लेकिन माता-पिता जिंदगी के इस पड़ाव पर भी बेटा-बेटी में भेद करने से नहीं चूकते।

भारत में पेरेंट्स अपना बुढ़ापा बेटों के साथ गुजारना चाहते हैं। हैंडबुक ऑफ एजिंग की स्टडी के अनुसार 80% युवा अपने बुढ़ापे में बेटे से सपोर्ट चाहते हैं। 2012 UNFPA ने भारत के 7 राज्यों में सर्वे किया जिसमें 50% बुजुर्ग ही अपने बेटे-बहू के साथ रह रहे थे।

दरअसल भारत में बेटियों को पराया धन समझा जाता है। इसलिए उनको ज्यादा पढ़ाया भी नहीं जाता। पेरेंट्स बेटों की पढ़ाई पर इस उम्मीद में खर्च करते हैं कि वह बुढ़ापे में उनका सहारा बनेगा। वहीं, हमारा समाज जो यह सोच रखता है कि बेटी के घर का पानी भी नहीं पीना। आज वही बेटियां बुढ़ापे में पेरेंट्स का साथ दे रही हैं।

3 भाई हैं। सभी अच्छा कमाते हैं। पिता के जाने के बाद तीनों भाइयों ने 1-1 महीने मां की देखभाल का जिम्मा उठाया, लेकिन 2 साल बाद ही तीनों ने मां को रखने से मना कर दिया। उन तीनों भाइयों को घर पेरेंट्स ने ही खरीदकर दिया था। ऐसे में बूढ़ी मां का सहारा स्वाति बनी। मां को बेटी के ससुराल में रहने पर संकोच हो रहा था।

बेटी ने  ससुराल के पास ही एक फ्लैट किराए पर लिया और वहां मां के साथ रहने लगी। वह पिछले 15 साल से मां का सहारा हैं। उनकी दवा, राशन, हॉस्पिटल का खर्च सब उठा रही हैं। कई साल बीतने के बाद भी भाइयों ने एक बार भी नहीं कहा कि मां को हमारे पास छोड़ दो। इस मामले में स्वाति के हस्बैंड खुलकर उनका साथ दे रहे हैं।

लिनिकल साइकोलॉजिस्ट प्रियंका श्रीवास्तव कहती हैं कि ज्यादातर बुजुर्ग पेरेंट्स बेटियों के साथ इसलिए नहीं रहना चाहते क्योंकि उन्हें बेटी में फाइनेंशियल और इमोशनल सिक्योरिटी नजर नहीं आती, जो उन्हें बेटों को देखकर मिलती है। पेरेंट्स शादीशुदा बेटी के साथ चाहकर भी सहज नहीं रह पाते। जबकि लड़कियां इमोशनल होती हैं और वे पेरेंट्स की मजबूरी और परेशानी बेटों से बेहतर समझती हैं।

लड़के जिम्मेदारी लेने से बचते हैं। ज्यादातर लड़के इंडिपेंटेंड हैं। आजादी से अपनी जिंदगी बिता रहे हैं। ऐसे में वे मां-बाप की दखल और रोक-टोक नहीं चाहते।

बहू के आने के बाद अक्सर बदल जाते हैं लड़के

लड़कों के लिए उनकी फैमिली का मतलब है- पति-पत्नी और बच्चा। उनकी परिवार की परिभाषा में उनके पेरेंट्स दूर-दूर तक शामिल नहीं होते। वे अपने आसपास भी एकल परिवार ही देखते हैं। पेरेंट्स को शिकायत होती है कि लड़के बीवी के आने के बाद बदल जाते हैं और मां से ज्यादा बीवी की सुनते हैं।

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उन्हें अपना भविष्य अपनी औलाद में दिखता है इसलिए वह अपना पैसा बच्चों पर खर्च करना चाहते हैं। जबकि उन्हें अपने सगे मां-बाप की बीमारी पर पैसा लगाना फिजूल खर्च लगता है और वे बुढ़ापे में उनसे कोई उम्मीद भी नहीं करते। उन्हें औलाद पर खर्च करना इन्वेस्टमेंट लगता है और पेरेंट्स पर खर्च करना पैसे की बर्बादी।

‘हेल्प ऐज’ नाम की संस्था ने 60 से 90 साल उम्र की 7911 बुजुर्ग महिलाओं पर एक सर्वे किया। इसमें सामने आया कि 16% महिलाएं अपने ही बच्चों से प्रताड़ित हुईं। इस सर्वे में 20 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों की महिलाएं शामिल थीं। इसमें 50% महिलाओं के साथ मारपीट हुई। 46% का घर में अनादर होता है।

40% के अनुसार उन्हें भावनात्मक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। इनमें 40% महिलाओं ने कहा कि ऐसा उनके खुद के बेटे करते हैं। 27% ने इसके लिए बहू को दोषी ठहराया।

फरीदाबाद स्थित ‘सुकृत ओल्ड ऐज होम’ के फाउंडर विपिन कुमार कहते हैं कि वृद्धाश्रम में जितने बुजुर्ग रहते हैं, उन्हें यहां उनके बेटों ने ही भेजा है। कई बार बेटे की मार-पीट, शराब पीने की आदत और बहू के साथ अनबन से परेशान बुजुर्ग खुद ओल्ड ऐज होम में रहने की गुहार लगाते हैं।

कुछ बुजुर्गों को शिकायत होती है कि परिवार वाले उन्हें टाइम नहीं देते। बेटा बात नहीं करता, बहू खाना नहीं देती, पोता-पोती अपनी पढ़ाई में बिजी रहते हैं। वृद्धाश्रम में बुजुर्ग महिलाओं की संख्या ज्यादा है। इन महिलाओं के पति गुजर चुके हैं। यही नहीं अपने बूढ़े मां-बाप से मिलने बेटियां ही ज्यादा आती हैं और बेटियां ही हैं जो इमोशनल होकर कहती हैं कि मेरे पेरेंट्स का ध्यान रखना।

जब बूढ़े मां-पिता को बच्चों का साथ चाहिए होता है, जब वे बिस्तर पर बीमार पड़े होते हैं तब भी उनके बेटे उन्हें देखने नहीं आते। जब बुजुर्ग इस दुनिया को अलविदा कह देते हैं तब लड़के वृद्धाश्रम पहुंचते हैं, लेकिन अगर किसी बुजुर्ग के घर से कोई नहीं आता तो संस्था ही उनका अंतिम संस्कार करती है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रसून कुमार कहते हैं कि कोर्ट सीनियर सिटीजन को हक दिलाने में बहुत एक्टिव है। अगर कोई बच्चा बुजुर्ग पेरेंट्स पर प्रॉपर्टी अपने नाम करने के लिए दबाव बनाता है या धमकी देता है तो वह बुजुर्ग पुलिस स्टेशन में जाकर एफआईआर करवा सकता है। अगर उनकी मर्जी के खिलाफ उन्हें वृद्धाश्रम भेजा जाए, तब भी वे ऐसा कर सकते हैं।

लेकिन हकीकत यह है कि भले ही उनकी सुरक्षा के लिए कई कानून बने हों, पर पेरेंट्स अपनी औलाद के खिलाफ कदम उठाना नहीं चाहते। अगर वे उनके खिलाफ कदम भी उठा लें तो उनके शरीर में इतनी ताकत नहीं होती कि वे कानूनी जंग के लिए रोज-रोज कोर्ट आएं। इसके अलावा अगर कोई अच्छा वकील करे तो उसकी फीस बहुत ज्यादा होती है। पेंशन के पैसों से वह फीस भरना मुश्किल होता है।

अगर वह कोर्ट में चले भी जाएं तो कोर्ट के ऑर्डर को लागू करवाना मुश्किल होता है। बुजुर्गों के लिए पहले साेसाइटी की सोच को बदलना पड़ेगा। अगर कोई बच्चा ऐसा बर्ताव करता है तो लोगों को उन बच्चों का ही बायकॉट करना चाहिए। दोषी बच्चों का सामाजिक बहिष्कार ही बुजुर्गों की जीत होगी। ऐसी संस्था बनाने की जरूरत है जो बुजुर्गों के हक की आवाज उठाए। उनकी कानूनी मदद करें। उनके कोर्ट केस का खर्चा उठाए।

पेरेंटिंग सबसे मुश्किल काम है। एक गलती बच्चे को गुस्सैल, जिद्दी और बदतमीज बना सकती है। बड़ा होकर वही बच्चा बुढ़ापा भी खराब कर सकता है। बच्चे के हर बर्ताव को पेरेंट्स को करीब से नोटिस करना चाहिए। बच्चे की आजादी और अनुशासन के बीच एक बैलेंस बनाना, सही-गलत की पहचान कराना जरूरी है। बच्चे को कैसे इमोशनली खुद से जोड़ें, इसके लिए आपको खुद का बर्ताव भी बदलना होगा।

बच्चे को कभी अपशब्द ना बोलें। उन्हें कभी जज न करें और उनके सामने भी कभी किसी को अपशब्द ना बोलें। बच्चों के सामने पेरेंट्स को कभी लड़ना नहीं चाहिए और पत्नी पर कभी हाथ नहीं उठाना चाहिए। भाई अगर बहन को मार रहा है तो उसे तुरंत डांटना चाहिए। बच्चे को अगर डांटते हैं तो उसके पीछे का कारण जरूर बताएं। बच्चों को हर चीज के लिए हां मत कहें। उन्हें जिंदगी में कुछ चीज हासिल करने के लिए संघर्ष करने दें।

बच्चे की हर ख्वाहिश पूरी होती है तो वह चीजों के साथ-साथ इंसान की भी कद्र नहीं करता। घर पहुंचकर मोबाइल ना चलाएं। बच्चों को वक्त दें, उनसे बात करें, उनकी परेशानी पूछें। जो पेरेंट्स बच्चों से बात नहीं करते, ऐसे बच्चे गलत हरकत, चिल्लाकर, मारपीट करके या घर की चीजों को तोड़कर पेरेंट्स का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं।

एक बहुत मशहूर कहावत है- जैसी करनी, वैसी भरनी। बच्चा जो अपने बचपन में देखता है, वह बड़ा होकर वही सीखता है। अगर बच्चे ने बचपन में अपने दादा-दादी के साथ पेरेंट्स का गलत व्यवहार देखा होगा तो वह बड़ा होकर वैसा ही बर्ताव करता है।

इसलिए अगर आप चाहते हैं कि बच्चा आपके बुढ़ापे का सहारा बने तो उन्हें अच्छी परवरिश दें और गलती पर डांटें। साथ ही पहले ही अपनी वसीयत बना लें और अपने गुजरने के बाद ही बच्चों को प्रॉपर्टी पर हक दें।

 

Khabar Abtak

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