यूक्रेन-रूस युद्ध में तंग रस्सी पर संतुलन बनाने की भारत की कूटनीति

डॉ. नंदिनी बसिष्ठ एसजीटी विश्वविद्यालय, गुरुग्राम का लेख
तुर्की के शहर इस्तांबुल में यूक्रेन और रूस फिर से “बिना शर्त युद्ध विराम” पर आम सहमति बनाने में विफल रहे, हालांकि दोनों ने 12,000 सैनिकों के शव लौटाने की प्रतिबद्धता जताई। वार्ता शुरू होने से पूर्व उम्मीदें कम थीं, दोनों पक्ष इस बात पर गहराई से विभाजित थे कि रूस द्वारा फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण शुरू करने के बाद से चल रहे युद्ध को कैसे समाप्त किया जाए। इस “जटिल परस्पर निर्भर” विश्व संरचना में, सभी बड़ी शक्तियां इस लंबे युद्ध में शामिल हैं जहां भारत ने बहुत सक्रिय रुख अपनाया।
युद्ध की शुरुआत से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की, दोनों से बात की है और शांति और संयम का आग्रह किया है। एससीओ शिखर सम्मेलन में पुतिन को दिए गए उनके 2022 के बयान, “यह युद्ध का युग नहीं है” पर वैश्विक स्तर पर प्रशंसा की ध्वनि गूंजी और अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलनों में भी इसका हवाला दिया गया, जो भारत की सॉफ्ट-पावर कूटनीति को दर्शाता है। भारत का रुख न तो निष्क्रिय है और न ही उदासीन, बल्कि बहुत संतुलित है क्योंकि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि भारत के फैसले, उसके राष्ट्रीय हितों से प्रेरित होते हैं, न कि वैश्विक दबाव से। इससे विदेश नीति की पारदर्शी व स्वाभिमानी परंपरा प्रतिध्वनित होती है जो गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) से शुरू हुई है, लेकिन अब एक बहुध्रुवीय व्यवस्था या ‘एंटिटी’ 21वीं सदी की दुनिया में विकसित हो रही है।
भारत की चुनौती पश्चिम, खासकर अमेरिका के साथ अपनी बढ़ती साझेदारी और रूस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों के बीच संतुलन बनाने में है। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड गठबंधन के सदस्य के रूप में, भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थन करता है। फिर भी, यूक्रेन के मामले में, नई दिल्ली ने शीत युद्ध में अपनी विदेश नीति याद दिलाने वाला गुटनिरपेक्ष दृष्टिकोण बनाए रखा है।
भारत के संतुलनकारी रुख का सबसे उल्लेखनीय परिणाम रूस से तेल आयात में वृद्धि रहा है। पश्चिमी देशों द्वारा रूसी ऊर्जा निर्यात पर व्यापक प्रतिबंध लगाए जाने के बाद, भारतीय रिफाइनर बड़ी मात्रा में रूसी तेल का आयात करते रहे हैं, जिससे घरेलू मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आर्थिक निरंतरता सुनिश्चित करने में मदद मिली है। इसके अलावा, रूस भारत के सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्ताओं में से एक है और अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और व्यापार में एक महत्वपूर्ण भागीदार है। नई दिल्ली ने तर्क दिया है कि ये खरीद किसी भी प्रतिबंध व्यवस्था का उल्लंघन नहीं करती और “विकसित भारत” के उसके दृष्टिकोण के अनुरूप है।
दूसरी ओर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन का दौरा किया और कृषि, चिकित्सा, संस्कृति एवं मानवीय सहायता, जिसमें चिकित्सा आपूर्ति और आपदा राहत शामिल है, में सहयोग प्रदान करने के लिए चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इसने युद्ध के शुरुआती दिनों में “ऑपरेशन गंगा” के तहत यूक्रेन से हजारों भारतीय नागरिकों, जिनमें ज्यादातर छात्र थे, को निकालने में मदद की। भारत ने शांति चाहने वाले लोकतंत्र के रूप में अपनी छवि के अनुरूप कई मौकों पर नागरिक बुनियादी ढांचे की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का पालन करने का आह्वान भी किया है।
इस प्रकार कोविड के बाद की दुनिया में, जब ध्रुवीय राजनीति दिन-प्रतिदिन बदल रही है, भारत का रुख अन्य देशों के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर सकता है। यह दृष्टिकोण भारत के वैश्विक प्रभाव को कितना मजबूत या सीमित करता है, यह देखना बाकी है – लेकिन अभी के लिए, नई दिल्ली अपने सही रास्ते पर चल रही है। भारत ने लगातार बातचीत और कूटनीति का आह्वान किया है, बिना किसी पक्ष का नाम लिए या उसे दोषी ठहराए अंतरराष्ट्रीय कानून के सम्मान पर जोर दिया है। भारत की विदेश नीति मशीनरी ने एक नाजुक संतुलन बनाए रखने के लिए अथक प्रयास किया है। यह क्वाड और द्विपक्षीय व्यापार समझौतों जैसी पहलों के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी को मजबूत करना जारी रखता है। साथ ही, यह रूस के साथ एक मजबूत संबंध बनाए रखता है, जो एक लंबे समय से रक्षा साझेदार और यूरेशियन सुरक्षा में एक प्रमुख खिलाड़ी है।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि यूक्रेन-रूस संघर्ष में भारत की भूमिका रणनीतिक स्वायत्तता के साथ वैश्विक शक्ति बनने की उसकी महत्वाकांक्षा को दर्शाती है। दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश और एक प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में, भारत स्वतंत्र विदेश नीति का विकल्प बनाने के अपने अधिकार का दावा कर रहा है, उस पर काम भी कर रहा है। पश्चिमी या पूर्वी ब्लॉकों के साथ अलाइनमेंट या संतुलन ‘ एक्सट्रीमली फ्रेजाइल’ या ‘सुपर सेंसिटिव’ मुद्दा है। इस ‘लिटमस टेस्ट’ में भी भारत सफल ही रहा है।
अहम पहलू: भले ही रूस विश्व की निर्विवाद महाशक्ति है लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि जब सामने वाला आत्मघात के ‘मोड’ में आ जाए तो कुछ भी संभव है। हाल ही में कुछ वीडियो वायरल हो रहे हैं जिनमें यूक्रेन के ड्रोन बड़ी संख्या में रूस के फाइटर प्लेन को तहस नहस कर रहे हैं। यूक्रेन के ‘ऑपरेशन स्पाइडर वेब’ से रूस के 60 हजार करोड़ के सैन्य उपकरणों, फाइटर प्लेन आदि का विध्वंस हो चुका। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो रूस बचाव की मुद्रा में आ गया है।