31 मार्च से पहले अपने क्रेडिटर का भुगतान करे अन्यथा उस पर आयकर देने के लिए तैयार रहे।
गोहाना, 24 मार्च : सीए कर्मबीर लठवाल, प्रधान सी ए एसोसिएशन गोहाना ने आयकर क़ानून के बारे में कर दाताओ को बताया कि 31 मार्च से पहले अपने क्रेडिटर का भुगतान करे अन्यथा उस पर आयकर देने के लिए तैयार रहे। आयकर अधिनियम 1961 की धारा 43B(h) और नए इनकम टैक्स क़ानून की धारा 37(2)(g) के कारण सूक्ष्म (माइक्रो ) तथा लघु (स्मॉल) व्यपारियों से की गई खरीद या परचेज का पेमेंट 31 मार्च को आउटस्टैंडिंग रहने पर टैक्स की बड़ी देनदारी आ सकती है। इस धारा के अनुसार यदि कोई करदाता सूक्ष्म और लघु व्यपारी से ख़रीदे गए माल या सेवा का भुगतान एमएसएमईडी क़ानून 2006 की धारा 15 में निर्धारित समय सीमा जो की 15 दिन ( (लिखित अग्रीमेंट के मामले में अधिकतम – 45 दिन ) है के बाद करता है तो उस की छूट उस वर्ष में मिलेगी जिस वर्ष में उस का भुगतान किया गया है।
उदाहरण के लिए यदि आपने किसी सूक्ष्म या लघु व्यापारी से 10 लाख का माल या सेवा 15 जनवरी 2025 को 10 खरीदा था जिस के 45 दिन 1 मार्च 2025 को ख़तम होते है और आप इस का भुगतान 31 मार्च 2025 से पहले कर देते हो तो आपको इस की छूट वर्ष 2024-25 में ही मिलेगी परंतु यदि आप इस का भुगतान 31 मार्च 2025 के बाद अप्रैल 2025 में करते हो तो आपको इस की छूट वर्ष 2025-26 में मिलेगी यानी कि वर्ष 2024-25 में यह 10 लाख रुपए धारा 43B(h) के कारण आपके प्रॉफिट में जोड़ दिये जाएगे हो और आपको इस पर इनकम टैक्स देना होगा।
सूक्ष्म व्यपार का अभिप्राय ऐसी फ़र्म से है जिसका प्लांट और मशीनरी में इन्वेस्टमेंट 1 करोड़ से ज्यादा नहीं हो और टर्नओवर 5 करोड़ से ज्यादा नहीं हो| और लघु व्यपार का अभिप्राय ऐसी फ़र्म से है जिसका प्लांट और मशीनरी में इन्वेस्टमेंट 10 करोड़ से ज्यादा नहीं हो और टर्नओवर 50 करोड़ से ज्यादा नहीं हो|
ट्रेडर्स या होलसेलर से की गई खरीद पर धारा 43B(h) के प्रावधान लागू नहीं होंगे। और बेचने वाला मैन्युफैक्चरर या सेवा प्रदाता का एमएसएमईडी क़ानून 2006 में रेजिस्ट्रेड होना जरूरी है अन्यथा ये प्रावधान लागू नहीं होंगे।
आयकर की यह धारा सभी माल या सेवा खरीदने वाले व्यपारियों पर लागू होंगे चाहे वह एमएसएमईडी क़ानून 2006 में रजिस्टर्ड हो अथवा नहीं|
अतः आप सभी को यह सुझाव दिया जाता है कि 31 मार्च 2025 से पहले अपने सभी सूक्ष्म एवं लघु (माइक्रो और स्माल ) क्रेडिटर्स का भुगतान कर दें अन्यथा बाद में आपको बहुत ज्यादा परेशानी हो सकती है और उसे परचेज पर बहुत भारी मात्रा में इनकम टैक्स देना पड़ेगा। अक्सर यह देखा गया है कि ग्रुप फर्म्स की पेमेंट भी आउटस्टैंडिंग रह जाते है,क्योंकि ये प्रावधान उन पर भी लागू होंगे। अतः इसका भी ध्यान रखे।