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हरियाणा में भाजपा 8 और कांग्रेस 2 सीटें जीत सकती है, गुटबाजी से कांग्रेस को नुकसान, BJP के सामने गर्मी और वीकएंड में शहरी वोटर को बूथ तक ले जाने की चुनौती

हरियाणा में लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार आज शाम को थम जाएगा। राज्य की सभी 10 सीटों पर 25 मई को एक साथ वोट डाले जाएंगे। यहां मुकाबला BJP और कांग्रेस के बीच है। 2019 में राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटें जीतने वाली भाजपा इस बार भी क्लीन स्वीप का दावा कर रही है। हालांकि ऐसा होता दिख नहीं रहा। 2019 में एक भी सीट न जीत पाने वाली कांग्रेस का इस दफा खाता खुलने की प्रबल संभावना है।

हरियाणा में पिछले 15-20 बरसों में यह पहला मौका है, जब सत्ताविरोधी लहर अपने चरम पर है। इसके बावजूद सत्ताधारी दल विपक्ष पर भारी नजर आता है।16 मार्च को लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ शुरू हुआ शोर-शराबा तकरीबन सवा 2 महीने चला। इस दौरान हरियाणा के चुनावी परिदृश्य में एक के बाद एक, कई बदलाव देखने को मिले। वोटिंग से 48 घंटे पहले ओवरऑल माहौल, पार्टियों के प्रचार, सत्ताविरोधी लहर, कैंडिडेट्स के सिलेक्शन, इलेक्शन मैनेजमेंट और जातीय समीकरणों की असेसमेंट की जाए तो हरियाणा में भाजपा 8 और कांग्रेस 2 सीटें जीत सकती है।

प्रदेश की सियासत पर करीबी नजर रखने वाले मानते हैं कि यदि रूरल बेल्ट में जाटों-किसानों की नाराजगी एक लेवल से आगे बढ़ी तो चौंकाने वाले रिजल्ट भी आ सकते हैं। वहीं अगर BJP के रणनीतिकार आखिरी 48 घंटों में माहौल संभालने में कामयाब हो गए तो पार्टी 8 से अधिक सीटें जीत सकती है। भीषण गर्मी के बीच BJP के रणनीतिकार शहरी वोटरों को घर से निकालकर पोलिंग बूथ तक पहुंचाने में कितने कामयाब हो पाते हैं? इस पर भी काफी कुछ डिपेंड करेगा।

भाजपा राज्य की सभी 10 और कांग्रेस 9 सीटों पर लड़ रही है। कांग्रेस ने कुरुक्षेत्र सीट I.N.D.I.A. अलायंस में शामिल आम आदमी पार्टी (AAP) को दी है।

BJP को 58.02% वोट मिले, कांग्रेस के लिए 17% का वोट स्विंग मुश्किल टास्क
हरियाणा में 2019 के लोकसभा चुनाव में BJP को कुल 58.02% वोट मिले और उसने सभी सीटें जीती। 23.32% के अतिरिक्त वोट स्विंग के साथ पार्टी को राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 79 पर लीड मिली।

इसके मुकाबले कांग्रेस को 28.42% वोट मिले। उसके पक्ष में भी 5.52% का एक्स्ट्रा वोट स्विंग देखने को मिला, लेकिन पार्टी 90 में से सिर्फ 10 विधानसभा सीटों पर लीड ले पाई। एक विधानसभा सीट पर JJP आगे रही।

पहली बार चुनाव लड़ने वाली जननायक जनता पार्टी (JJP) को 4.9% और BSP को 3.65% वोट मिले। सबसे ज्यादा नुकसान इनेलो को हुआ। उसे सिर्फ 1.9% वोट मिले और 2014 के मुकाबले उसके 22.51% वोट खिसक गए।

इस बार बेशक ग्राउंड पर BJP का विरोध है, लेकिन उसे हराने के लिए कांग्रेस को 45% से अधिक वोट लेने होंगे। बाइपोलर फाइट में 17% का एक्स्ट्रा वोट स्विंग करवा पाना असंभव तो नहीं लेकिन मुश्किल टास्क जरूर है। इनेलो, JJP और BSP का प्रदर्शन कमजोर हुआ और उनके वोट भी कांग्रेस-BJP में बंटे तो मुकाबला और कड़ा हो जाएगा।

लोकसभा उम्मीदवारों पर निकल रहा राज्य सरकार का गुस्सा
लोगों में PM नरेंद्र मोदी की जगह हरियाणा सरकार के वर्किंग स्टाइल को लेकर ज्यादा नाराजगी है। ये बात BJP हाईकमान ने भी भांप ली थी इसलिए उसने राज्य इकाई की इच्छा के बावजूद लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराने का रिस्क नहीं लिया।

इसके बावजूद लोकसभा उम्मीदवारों को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। अगर लोकसभा के चुनाव नतीजे BJP नेतृत्व की उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहे तो उसकी ज्यादा जिम्मेदार हरियाणा सरकार होगी।

हालांकि मोदी फैक्टर और राम मंदिर से शहरी इलाकों में BJP को ऐज है। पार्टी ने अर्बन एरिया पर ज्यादा फोकस भी किया है ताकि किसानों की नाराजगी से रूरल बेल्ट से नुकसान हो तो उसे शहरी इलाकों से ज्यादा वोट लेकर बैलेंस किया जा सके।

CM चेहरा बदलने से विपक्ष को हमलावर होने का मौका मिला
लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले, सीएम चेहरा बदलने से भी विपक्ष को आक्रामक होने का मौका मिल गया। दरअसल, मुख्यमंत्री बदलकर BJP नेतृत्व ने एक तरह से स्वीकार कर लिया कि राज्य में उसकी सरकार के कामकाज के तौर-तरीकों में कमी रही। CM बदलने का फैसला लोकसभा चुनाव के बाद लिया जाता तो शायद विपक्ष के हाथ ये हथियार नहीं लगता।

ग्रामीण इलाकों में इस बार BJP नेताओं और उम्मीदवारों से जिस तरह सवाल पूछे गए, वैसा पहले नहीं देखा गया। इसी वजह से कैंडिडेट्स गांवों में ज्यादा प्रचार तक नहीं कर पाए।

प्रदेश में 6 महीने बाद विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है और जनता वहां बदलाव के मूड में नजर आ रही है। लोकसभा उम्मीदवारों के ज्यादा विरोध की एक वजह ये भी है।

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BJP के सामने गर्मी और वीकएंड में शहरी वोटर को बूथ तक ले जाने की चुनौती
हरियाणा में इस बार गर्मी के सारे रिकॉर्ड टूटते दिख रहे हैं। मौसम विभाग के अनुसार, 22 मई को ही सिरसा जिला पूरे देश में सबसे गर्म रहा। वहां अधिकतम तापमान 47.8 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। राज्य में 25 मई को वोटिंग है और उसी दिन से नौतपा शुरू हो रहा है।

BJP की उम्मीदें शहरी मतदाताओं पर टिकी है। हालांकि इतनी गर्मी में शहरी वोटर घर से निकलकर पोलिंग बूथ तक जाएगा, इसमें संदेह है। 25 मई को शनिवार भी है। दो दिन के वीकएंड का असर शहरी इलाकों में वोटिंग पर दिख सकता है।

BJP के रणनीतिकार 47 डिग्री तापमान में शहरी वोटर को घर से बूथ तक पहुंचा पाने की स्ट्रेटेजी में कितने सफल रहते हैं, यह देखना होगा।

सत्ताविरोधी लहर में BJP को मोदी फैक्टर का सहारा
पूरे हरियाणा में घूमने के बाद एक बात तो साफ है कि BJP के प्रति सत्ताविरोधी लहर है। ऐसे में उसके बड़े नेता भी मोदी फैक्टर के सहारे हैं। जमीनी हालात को समझते हुए मनोहर लाल खट्टर और राव इंद्रजीत तक खुद को बैकफुट पर रखते हुए मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं।

दरअसल BJP के पास नरेंद्र मोदी के रूप में बड़ा और मजबूत फेस है। विपक्ष के पास फिलहाल ऐसा कोई चेहरा नहीं है जिस पर वोटर दांव लगा सके। अब चूंकि मतदाताओं के पास विकल्प नहीं है, इसलिए तमाम गुस्से के बावजूद वह BJP के पक्ष में वोट दे सकते हैं। कुछ इसी तरह की उम्मीद BJP के रणनीतिकार कर रहे हैं और ऐसा हुआ तो मई में तपते माहौल में सियासी हवा का रुख भगवा पार्टी की तरफ मुड़ सकता है।

चुनाव की घोषणा से पहले उम्मीदवार उतारने से BJP को ऐज
हरियाणा में BJP ने सबसे पहले अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया। उसने 6 कैंडिडेट्स का ऐलान चुनाव तारीखों की घोषणा से भी 3 दिन पहले, 13 मार्च को ही कर दिया। मनोहर लाल खट्‌टर, राव इंद्रजीत, कृष्णपाल गुर्जर, चौधरी धर्मबीर, बंतो कटारिया और अशोक तंवर जैसे चेहरों को टिकट मिलने से माहौल भाजपा के पक्ष में बनता नजर आया।

पार्टी ने बचे हुए 4 प्रत्याशियों के नाम 24 मार्च को घोषित कर दिए। उसने नवीन जिंदल और रणजीत चौटाला को टिकट देकर फिर चौंका दिया। ग्राउंड पर एक्टिविटी बढ़ने से BJP को हाईप मिलने लगी।

कांग्रेस को टिकटों में देरी का माइलेज मिला
कांग्रेस की लिस्ट का इंतजार काफी लंबा चला और इसका कारण था- नेताओं की आपसी गुटबाजी। सभी खेमों को साधने के लिए हाईकमान को सब-कमेटी बनानी पड़ी। अंतत: कांग्रेस के 8 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट 26 अप्रैल को आई यानि BJP उम्मीदवारों की घोषणा के डेढ़ महीने बाद। गुरुग्राम से राज बब्बर का टिकट 30 अप्रैल को फाइनल हो पाया।

टिकट लेट देने का कांग्रेस को एक तरह से फायदा हुआ। हर तरफ संभावित उम्मीदवारों की चर्चा चलती रही और नित नए नाम सामने आते रहे। इससे पार्टी को माइलेज मिला। टिकट आवंटन में ज्यादातर सीटों पर मजबूत चेहरों को मौका मिलने से कांग्रेस न केवल मुकाबले में खड़ी हो गई बल्कि एक-आध सीट पर शुरुआती ऐज लेती भी नजर आई।

10 साल बाद माकूल माहौल लेकिन गुटबाजी भारी पड़ेगी
अगर अपनी कमियां आड़े न आईं तो कांग्रेस पिछले 2 आम चुनाव के मुकाबले इस बार अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो एक बार फिर साबित हो जाएगा कि किसी दूसरे दल के मुकाबले कांग्रेस को कांग्रेसी नेता ही हरवाते हैं।

पिछले 4 लोकसभा चुनाव की बात करें तो 2004 में कांग्रेस ने 10 में से 9 सीटें जीती थी। 2009 में उसे 7 सीटें मिली लेकिन 2014 में यह आंकड़ा घटकर सिर्फ 1 सीट का रह गया। 2019 में पार्टी ने रोहतक की इकलौती सीट भी गंवा दी।

अभय चौटाला का मकसद सिर्फ पार्टी सिंबल बचाना

प्रदेश के पूर्व CM ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) ने कुछ सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं लेकिन उनमें से कोई मुख्य मुकाबले में नहीं है। इनेलो के इकलौते विधायक, अभय चौटाला अपनी पार्टी का इलेक्शन सिंबल-चश्मा- बचाने के लिए खुद कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से मैदान में उतरे हैं।

कांग्रेस ने कुरुक्षेत्र सीट I.N.D.I.A. अलायंस में अपनी सहयोगी आम आदमी पार्टी (AAP) को दी है। अभय यहां चुनाव लड़ रहे AAP के प्रदेशाध्यक्ष सुशील गुप्ता को मिलने वाले वोटों में सेंध लगा रहे हैं। इससे BJP के नवीन जिंदल की राह कुछ आसान नजर आ रही है।

JJP उम्मीदवारों के लिए जमानत बचाना भी मुश्किल

ओमप्रकाश चौटाला के पोते दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP) में जबर्दस्त भगदड़ मची है। पार्टी बिखराव के दौर में है। दुष्यंत के ज्यादातर MLA अपने उम्मीदवारों की जगह BJP और कांग्रेस कैंडिडेट्स के प्रचार में लगे हैं।

दुष्यंत की मां नैना चौटाला को हिसार में तीसरे स्थान पर रहने के लिए अपनी ही देवरानी और इनेलो उम्मीदवार सुनैना चौटाला से चुनौती मिल रही है। अगर JJP उम्मीदवार इस चुनाव में जमानत बचाने में भी कामयाब हो गए तो यह पार्टी के लिए उपलब्धि जैसा होगा। हालांकि इसकी संभावना न के बराबर है।

Khabar Abtak

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