लेख

नैतिकता बोझिल होती है लेकिन इसका बोझ जरूरी है

डॉ तेजी ईशा का लेख

लेखिका एसजीटी यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता विभाग में कार्यरत हैं

कल शाम की बात है। मैं मेट्रो से घर लौट रही थी। हमेशा की तरह गर्दन झुकाए, एक किताब के पन्नों में खोए खोए। तभी मेरे बगल की एक सीट खाली हुई और एक लड़की के कदम उस तरफ बढ़ते हुए मुझे दिखे। मेरी साथ वाली सीट पर बैठा था एक आदमी। लड़की उसके सामने खड़ी हो गई। लड़की की जांघों पर मेरी नजर गई। उसकी जांघ के पास उस व्यक्ति की उंगलियां थीं और दोनों के बातचीत से मैं असहज हो गई। और ये भी समझ गई कि दोनों एक ही दफ़्तर में काम करते हैं। आदमी उसका बॉस है और लड़की उसके अंडर काम करती है। इतने में मेरा स्टेशन आ गया और मैं भाग कर गेट पर आ गई। वहां आने के बाद मैंने पहली दफा उस आदमी और लड़की को देखा। लड़की की उम्र 25-30 की रही होगी तो आदमी यही कोई 45-50 का होगा। मेट्रो का गेट खुला और मैं वहां से बाहर निकल आई लेकिन वो घटना मेरे अंदर से नहीं निकली। मोबाइल में आए दिन कोई न कोई रील दिल्ली मेट्रो की दिखती रहती है। कुछ हंसने लायक होती हैं तो कुछ को देख कर गम्भीर विमर्श करने का मन करता है लेकिन जिंदगी की भागम-भाग में ये सब पीछे छूट जाता है।

आज देश की करोड़ों लड़कियां प्राइवेट सेक्टर में काम कर रही हैं। कुछ मन के हिसाब से काम कर रही हैं, अच्छे माहौल में काम कर रही हैं। ज़्यादातर जरूरत के लिए खराब से खराब माहौल और बॉस के साथ काम करने को मजबूर हैं। ऐसे में उनकी दोहरी जिम्मेदारी बनती है। उन्हें काम भी करना है और अपने लिए नैतिकता की एक रेखा भी अपने मन में खुद ही खींचनी है। आप अपने मन से अपने किसी को भी अपना साथी चुन सकती हैं। उसके साथ रहने का फैसला कर सकती हैं, करना भी चाहिए। प्रेम विवाह मेरे ख़्याल से लड़कियों के लिए उत्तम चीज है बशर्ते, आप अपने प्रेमी को पहचानें और एक सही व्यक्ति को चुनें। अगर आप ऐसे किसी दफ़्तर में हैं जहां आपका बॉस, आपका कोई सीनियर आपको तरक्की के बदले, कम काम के बदले या कुछ प्रतिशत ज़्यादा इंक्रिमेंट के बदले आपसे कुछ उम्मीद कर रहा है और आप वो पूरी कर रही हैं तो आप एक ऐसी दलदल में फंस रही हैं जहां से निकलना शायद आसान नहीं होगा। हो सकता है कि इस दलदल में फंसते हुए आपकी जान चली जाए या आपके साथ कुछ ऐसा हो जाए कि आप जीते-जी एक लाश में तब्दील हो जाएं।

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अपनी जरूरतों को सीमित रखिए। जितना कमा रही हैं, खर्च को उसी के हिसाब से बांधिए। शहरी चमक-धमक में आकर “चादर से ज़्यादा पैर मत फैलाइए” ऐसा करने के बाद कोई न कोई, कभी न कभी आपका फायदा उठाना ही चाहेगा। दूसरी बात, कई बार लड़कियां भी शॉर्टकट अपनाना चाहती हैं। जल्दी से जल्दी बड़ी गाड़ी में घूमना चाहती हैं। अच्छे होटल में जाना चाहती हैं। या वो सब करना चाहती हैं जो बाज़ार उन्हें चौबीसों घंटे दिखाता रहता है। ये सारी चीजें मेहनत से भी मिल सकती हैं। मिलती ही हैं और जब अपनी मेहनत से मिलती है तो ये सब सिर्फ़ आपका होता है। किसी और का दावा इस पर नहीं होता। न ही इस सब के बदले आपको किसी को कुछ देना होता है। न ही आपको अपने विपरीत जाकर कुछ करना होता है। इसलिए आप मेहनत से मत भागिए। जितना कर सकती हैं, उतना कीजिए। सपने वही हैं जो आपकी मेहनत से पूरे हों। किसी और से चाहे जो मिल जाए वो या तो भीख कहलाएगा या सौदेबाजी!

तो लड़कियो, आप ऐसे बॉस या कलिग से सचेत रहो जो आपको सिर्फ “मजे की चीज” समझते हैं। वो आपको अगर कुछ दे रहे हैं जो आपका अधिकार नहीं है या जो आप डिजर्व नहीं करते तो उसे वहीं के वहीं मना कर दो। क्योंकि वो थोड़ा देकर आपसे बहुत कुछ की उम्मीद पाले बैठे हैं और अगर आप ये सब जानते हुए, समझते हुए उनके ट्रैप में आ ही गई हो तो अब जल्दी से जल्दी इस ट्रैप से निकलने की सोचो क्योंकि ये आपको मानसिक तौर से खोखला कर देगा। इतना ही नहीं, हो सकता है कि आप किसी दिन इस वजह से किसी बड़ी मुश्किल में फंस जाओ। आपके साथ कुछ ऐसा हो जाए जिसके बाद आपकी आंखों के सामने अंधेरा छा जाए। आप अकेले हो जो। वैसे तो अब महात्मा गांधी की बात करना ओल्ड फैशन है फिर भी जाते-जाते उनका दिया एक मंत्र आपको दिए जा रही हू। इसे गांठ बांध लिया तो कोई मर्द तुम्हें ठग नहीं सकेगा। गांधी बाबा कहते हैं: अगर कोई आपको आपकी क्षमता से ज़्यादा कुछ भी दे रहा है तो समझो वो आपको ग़ुलाम बना रहा है।

उम्मीद करती हूं कि आप सब इस मंत्र की मदद से आजाद रहोगी। किसी की ग़ुलाम नहीं बनोगी और किसी मेट्रो में कोई सबके सामने आपकी जांघों पर हाथ फेरने की हिम्मत नहीं करेगा।

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