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सोनीपत जिले में ढह गया पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा का गढ़, कांग्रेस का ओवर कॉन्फिडेंस-जातीय समीकरण से जीती BJP; बरोदा ने बचाई लाज

सोनीपत में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ से 6 में से 5 सीट निकल गई। यहां पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा का गढ़ ढ़ह गया। कांग्रेस प्रत्याशियों का ओवर कॉन्फिडेंस और पार्टी में रूठों की तरफ से मुंह मोड़ना भी बड़ा कारण रहा। कांग्रेस यहां विरोधियों के जातिगत समीकरण को भी भेद नहीं पाई। साथ ही पुराने चेहरों से भी मतदाता नाराज दिखे।

सोनीपत की 6 विधानसभा सीटों में से 4 में चुनाव परिणाम अप्रत्याशित रहे। सोनीपत में कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में गए मेयर निखिल मदान ने कांग्रेस के सुरेंद्र पंवार को बड़े मार्जिन से मात दी। वहीं गन्नौर में पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा का सिक्का नहीं चला और वे निर्दलीय देवेंद्र कादियान से जिले में सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से हार गए।

राई में भाजपा की कृष्णा गहलावत, खरखौदा में भाजपा के पवन खरखौदा, गोहाना में भाजपा के अरिवंद शर्मा व बरोदा में कांग्रेस के इंदुराज नरवाल उर्फ भालू जीते हैं। खरखौदा व गोहाना में तो न सीटों के चुनावी इतिहास में पहली बार कमल खिला है। यहां भाजपा दो पूर्व सांसदों रमेश कौशिक के भाई देवेंद्र कौशिक गन्नौर सीट पर और पूर्व सांसद किशन सिंह सांगवान के बेटे प्रदीप सांगवान बरोदा में तीसरे स्थान पर रहे हैं। भाजपा के पूर्व सांसद अरविंद शर्मा पहली बार विधानसभा का चुनाव जीते हैं।

सोनीपत की चार सीटों गोहाना, खरखौदा, राई व बरोदा में पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्‌डा का सीधा सीधा प्रभाव दिख रहा था, लेकिन मतगणना में कांग्रेस के ये किले धड़ाम से ढ़ह गए। इन सीटों पर भाजपा जहां जातिगत समीकरण से खेल गई, वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी व वरिष्ठ नेताओं ने अपनी ही पार्टी से जुड़े गए बागियों और नाराज नेताओं को मनाने तक की कोशिश नहीं की। असल में पूर्व सीएम हुड्‌डा के नाम से उनको अपनी जीत पक्की नजर आ रही थी। ओवर कॉन्फिडेंस के चलते वे धड़ाम हो गए।

गोहाना, बरोदा, राई व खरखौदा चारों सीटों पर चुनाव मुकाबला कड़ा रहा। जितने वोटों से यहां हार जीत हुई है, कांग्रेसी अपने नाराज नेताओं को मना कर इसे आसानी से कवर कर सकते थे, लेकिन ऐसे प्रयास नहीं किए गए। भूपेंद्र हुड्‌डा और दीपेंद्र हुड्‌डा ने चुनाव प्रचार के दौरान अपने नाराज नेताओं से बात तक नहीं की। 2014 व 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा व पीएम नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद ये सोनीपत जिला भूपेंद्र हुड्‌डा के साथ खड़ा रहा था।

बात गोहाना हलके की करें तो यहां पर बीजेपी के डा. अरविंद कुमार शर्मा ने 10429 वोटों से जीत दर्ज की है। अरविंद कुमार शर्मा को इस सीट से 57055 वोट मिले है। दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस के जगबीर सिंह मलिक को 46626 वोट मिले हैं। गोहाना में कभी भूपेंद्र हुड्‌डा के खास रहे राजवीर दहिया और कांग्रेस की टिकट न मिलने से नाराज हर्ष छिक्कारा निर्दलीय प्रत्याशी थे। जगबीर मलिक ने चुनाव में खूब मेहनत की, लेकिन उन पर बागी भारी पड़ गए।

चुनाव में हर्ष को 14761 वोट मिले हैं, जबकि राजवीर सिंह दहिया को 8824 वोट मिले। इन दोनों को मिले कुल वोटों से हार का अंतर आधा था। कांग्रेस इनको मैनेज नहीं कर पाई। कांग्रेस का वोट बैंक यहां बंट गया और पांच बार के विधायक जगबीर मलिक हार गए। दूसरी तरफ डा. अरविंद शर्मा का चुनाव आरंभ में कमजोर नजर आ रहा था, लेकिन उन्होंने पिछड़ा वर्ग के नेताओं को अपने पाले में किया ओर जातिगत समीकरण से चुनाव जीत गए। यहां पहली बार कमल खिला है।

राई के चुनाव परिणाम को देखें तो यहां पर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष मोहनलाल बड़ौली की सीट पर भाजपा की कैंडिडेट कृष्णा गहलावत ने 4673 वोटों से जीती है। यहां पर कांग्रेस ने नए चेहरे जयभगवान आंतिल को उतारा था। यहां पर भी कांग्रेस को भी अपनों ने ही मारा है। पूर्व सीएम हुड्‌डा के खास पूर्व विधायक जयतीर्थ दहिया ने चुनाव प्रचार के बीच कांग्रेस छोड़ दी। इसी प्रकार टिकट के दावेदार रहे जसपाल आंतिल ने भी कांग्रेस को छोड़ कर मतदान से 48 घंटे पहले भाजपा को समर्थन दे दिया।

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दोनों नेताओं की नाराजगी ये थी कि टिकट के दावेदार थे, टिकट नहीं मिली, लेकिन भूपेंद्र हुड्‌डा या दीपेंद्र हुड्‌डा ने इनसे बात करना भी उचित नहीं समझा। इन्होंने इसे अपनी तौहीन माना और समर्थकों को कांग्रेस से दूर रहने का संदेश दे दिया। यहां कांग्रेस की हार का अंतर इतना नहीं था कि इसे मैनेज नहीं किया जा सके। लेकिन यहां पर पार्टी का ओवर कॉन्फिडेंस ही उनको हरा गया।

गन्नौर विधानसभा क्षेत्र में आरंभ से ही माहौल निर्दलीय देवेंद्र कादियान के पक्ष में था। कांग्रेस ने यहां पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा को उतारा। वे यहां या तो लोकसभा चुनाव के मौके पर या फिर विधानसभा चुनाव के मौके पर दीखे। इससे उलट देवेंद्र कादियान लगातार लोगों के बीच में थे और जनसेवा के कार्य भी करा रहे थे। उन्होंने देवा फाउंडेशन के बैनर तले युवाओं की एक मजबूत टीम खड़ी की थी, इसमें हर गांव से युवा चेहरे शामिल थे।

कुलदीप शर्मा का पूरा चुनाव ही भूपेंद्र हुड्‌डा के सहारे जाट वोट बैंक पर टिका था। यहां से कुलदीप शर्मा 35209 वोट से हारे। सभी सीटों पर ये कांग्रेस की सबसे बड़ी हार रही। कुलदीप शर्मा को जिताने के लिए यहां राहुल गांधी भी आए। भूपेंद्र हुड्‌डा व दीपेंद्र के दोरे भी खूब हुए, लेकिन वे जाट वोट बैंक को भुना नहीं पाए।

खरखौदा में कांग्रेस ने पुराने चेहरे जयवीर वाल्मीकि पर दांव खेला था। यहां पर बीजेपी के पवन खरखौदा 5635 वोटों से जीत गए। लगातार एक ही चेहरे को टिकट देने पर कांग्रेस के वर्करों में रोष था। हुड्‌डा परिवार को इससे अवगत भी कराया गया था, लेकिन फिर भी जयवीर को मैदान में उतारा। पूर्व के चुनाव में यहां कांग्रेस के साथ खड़े रहने वाले नेता यहां चुनाव प्रचार से गायब दिखे।

वैसे भी पवन खरखौदा तीन चुनाव हार चुके थे। खरखौदा का चुनावी इतिहास में एक ये भी है कि 3 चुनाव हारने वाला चौथा चुनाव यहां जीत जाता है।

सोनीपत के गढ़ में पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्‌डा की लाज बरोदा हलके ने बचा ली। हालांकि यहां भी कांग्रेस के बागी डा. कपूर नरवाल अंतिम राउंड तक कड़े मुकाबले में रहे। ऐसा कई बार हुआ, जब लगा कि ये सीट भी कांग्रेस के हाथ से निकल गई है। कांग्रेस प्रत्याशी इंदूराज नरवाल ने 5642 से जीत दर्ज की है। इंदूराज नरवाल को इस सीट से 54462 वोट प्राप्त हुए है।

दूसरे नंबर पर उनके प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय उम्मीदवार कपूर सिंह नरवाल रहे है। कपूर सिंह को 48820 वोट मिले है। तीसरे नंबर पर भाजपा प्रत्याशी प्रदीप सिंह सांगवान रहे है। इन्हें 22584 वोट मिले है। प्रदीप पूर्व सांसद किशनसिंह सांगवान के बेटे हैं।

सोनीपत सीट पर BJP ने 20 साल बाद फिर से पंजाबी कार्ड खेला था। इसके चलते निखिल मदान चुनाव जीत गए। 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के ललित बत्रा ने मुंह की खाई थी। इसके बाद अगले 3 चुनाव 2009, 2014 व 2019 में भाजपा की कविता जैन चुनाव लड़ी और दो बार विजेता रही। 2019 में कविता जैन के हारने के बाद अब BJP ने उनको नकार दिया।

भाजपा ने खोई सीट को दोबारा पाने के लिए अपने पुराने नेताओं-वर्करों को किनारे कर दिया है। निखिल 3 माह पहले ही कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे। सोनीपत सीट से बीजेपी के उम्मीदवार निखिल मदान ने 29627 वोटों से जीत दर्ज की है। इस सीट पर निखिल मदान को 84827 वोट मिले है। उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के सुरेन्द्र पंवार को 55200 वोट मिले है। सुरेंद्र पंवार ईडी की गिरफ्तारी के बाद जेल में थे और चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में बाहर आए। उनकी सिम्पैथी चुनाव में काम नही आई

 

Khabar Abtak

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