हरियाणा में भाजपा के रणनीतिकारों ने सभी 10 सीट पर जीत हेतू अलग-अलग स्ट्रेटेजी बनाकर किया उम्मीदवारों का चयन ; 10 में से 5 सीटों पर चेहरे बदले,जाट, वैश्य और पंजाबी समुदाय पर दांव
सोनीपत :- हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर BJP अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है। पार्टी ने अपने 4 सांसदों को दोबारा मैदान में उतारा है वहीं कुछ बड़े नेताओं के टिकट काट दिए। इस बार 10 में से 5 सीटों पर चेहरे बदल दिए गए। पार्टी के रणनीतिकारों ने हर सीट के लिए अलग स्ट्रेटेजी बनाकर उसी हिसाब से उम्मीदवार फाइनल किए।
करनाल में पंजाबी वोट को साधने के लिए मनोहर लाल खट्टर, फरीदाबाद में OBC उम्मीदवार के तौर पर कृष्णपाल गुर्जर को टिकट दिया है। गुरुग्राम में केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह को लगातार तीसरी बार मौका देने का मकसद भी OBC वोट बैंक को अपने पक्ष में बनाए रखना है।
सोनीपत के सांसद रमेश चंद्र कौशिक का टिकट काटकर ब्राह्मण बिरादरी से आने वाले मोहन लाल बड़ौली पर भरोसा जताया है। रोहतक में सीटिंग MP और पार्टी के बड़े ब्राह्मण चेहरे डॉ. अरविंद शर्मा को रिपीट किया वहीं, भिवानी-महेंद्रगढ़ में जाट-अहीर वोटरों के कंबीनेशन के चलते लगातार तीसरी बार चौधरी धर्मबीर को प्रत्याशी बनाया गया। यहां अहीर वोटरों को धर्मबीर के पक्ष में साधने का दारोमदार राव इंद्रजीत पर रहेगा।
कुरुक्षेत्र सीट पर वैश्य वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के मकसद से नवीन जिंदल उतारे गए वहीं जाट बाहुल्य हिसार संसदीय सीट पर जाटों को पार्टी से जोड़े रखने की रणनीति के तहत रणजीत चौटाला को टिकट दिया गया। जाट बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले हिसार के सांसद बृजेंद्र सिंह के कांग्रेस के चले जाने के बाद यहां पार्टी के सामने इस वोट बैंक को साधने की चुनौती है।
अंबाला सीट पर भाजपा नेतृत्व ने अपने ही दिवंगत सांसद रतनलाल कटारिया की पत्नी पर भरोसा जताया है। कटारिया का सालभर पहले निधन हो गया था। इस बार इस सीट से एससी उम्मीदवार के तौर पर उनकी पत्नी बंतो कटारिया अपना पहला चुनाव लड़ेंगी।
सिरसा की सांसद सुनीता दुग्गल की कमजोर स्थिति के चलते इस बार उनका टिकट काटकर डॉ. अशोक तंवर पर दांव खेला गया।
आइये जानते हैं हर सीट पर क्या है भाजपा की रणनीति
करनाल में पंजाबी वोट बैंक की वजह से मनोहर लाल खट्टर
इसकी 2 वजहें हैं। पहली.. मनोहर लाल खट्टर पंजाबी चेहरा हैं। दूसरा.. पिछले करीब साढ़े 9 साल बतौर मुख्यमंत्री वह हरियाणा की सियासत के सेंटर पॉइंट रहे।
भाजपा ने उन्हें करनाल से टिकट देकर जातिगत समीकरण को भी साधा है। खट्टर पंजाबी खत्री समुदाय से संबंधित हैं। करनाल में सबसे ज्यादा 2 लाख वोटर पंजाबी समुदाय के वोटर हैं। लगभग इतनी ही संख्या जाट मतदाताओं की है। तीसरे नंबर पर डेढ़ लाख ब्राह्मण वोट और चौथे पर 1.20 लाख रोड बिरादरी और बाकी जट सिख हैं।
यहां भाजपा का पूरा जोर पंजाबी खत्री, ब्राह्मण और बाकी वोट बैंक पर है। नॉन जाट की राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा मनोहर लाल रहे, इस वजह से भाजपा ने पूरी रणनीति इसी लिहाज से बनाई है। पिछली 2 बार से लगातार पंजाबी उम्मीदवारों ने यहां से जीत दर्ज की है।
अंबाला में सहानुभूति और मोदी लहर की वजह से बंतो कटारिया
अंबाला लोकसभा सीट रिजर्व है। यहां पर पिछले 17 लोकसभा चुनावों में से 9 में कांग्रेस ने जीत हासिल की है जबकि 5 में भाजपा जीती। पिछले 2 लोकसभा चुनावों 2014 और 2019 में भाजपा के रतन लाल कटारिया ने लगातार जीत हासिल की।
पिछले चुनाव में रतनलाल कटारिया ने कांग्रेस की दिग्गज नेत्री कुमारी सैलजा को हराया था। राजनीति के लिहाज से अंबाला लोकसभा सीट को हमेशा बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस सीट से लगातार दो बार जीत हासिल करने वाली कांग्रेस की कुमारी सैलजा तत्कालीन यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री रही।
1952 में अस्तित्व में आई यह सीट वैसे तो कांग्रेस का गढ़ रही है, लेकिन मोदी लहर की वजह से पिछले दो चुनावों से भाजपा इस सीट को जीतने में कामयाब रही।
यही वजह है कि भाजपा ने रतन लाल कटारिया के निधन के बाद उनकी पत्नी बंतो कटारिया को टिकट दी। भाजपा यह नहीं दिखाना चाहती थी कि कटारिया के निधन के बाद परिवार को पार्टी ने छोड़ दिया। वहीं पिछली 2 बार मोदी लहर के बाद इस बार भी अंबाला में भाजपा को मोदी मैजिक की उम्मीद है।
हिसार में रणजीत के जरिए चौटाला परिवार की सियासत में सेंध
हिसार में मौजूदा सांसद बृजेंद्र सिंह के पार्टी छोड़ने के बाद भाजपा ने सरप्राइज सियासत की। राज्य सरकार में निर्दलीय MLA से मंत्री बनाए रणजीत चौटाला को पहले पार्टी में शामिल किया और फिर टिकट दे दी।
इसके जरिए भाजपा ने चौटाला परिवार की सियासत में सेंध लगाई है। हरियाणा में कभी चौटाला परिवार सियासत की दशा-दिशा तय करता था। यही वजह है कि जजपा के अजय चौटाला-दुष्यंत चौटाला के अलग होने के बाद भी भाजपा यह मैसेज नहीं देना चाहती थी कि चौटाला परिवार से उनकी कोई नाराजगी या दूरी है। हिसार में रणजीत चौटाला के जरिए अब भाजपा जाट मतदाताओं में अपनी पैठ बनाएगी। वहीं रणजीत के सहारे पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल के नाम को भी भुनाएगी।
रणजीत के जरिए सिर्फ हिसार नहीं बल्कि निशाने पर सिरसा सीट भी है। इसी वजह से रणजीत को सिरसा से उम्मीदवार अशोक तंवर के जरिए शामिल कराया। सिरसा को चौटाला परिवार की सियासत का गढ़ माना जाता है।
सोनीपत: RSS से नजदीकी का मोहन लाल बड़ौली को फायदा
सोनीपत से भाजपा ने इस बार दो बार से सांसद रहे रमेश कौशिक का टिकट काट दिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से नजदीकी और लंबे समय से भाजपा से जुड़े होने का राई विधायक और भाजपा के प्रदेश महामंत्री मोहन लाल बड़ौली को फायदा मिला है। पिछले एक महीने से भाजपा सोनीपत सीट आरएसएस से नजदीकी और लंबे समय से भाजपा से जुड़े होने के कारण मिला मौका शीर्ष नेतृत्व बड़ौली के अलावा पहलवान योगेश्वर दत्त के नाम पर भी चर्चा कर रहा था, लेकिन मोहन लाल ने बाजी मार ली।
2019 में भाजपा ने मोहन लाल को राई विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया राई से चुनाव जीतकर बड़ौली संगठन के भरोसे पर खरे उतरे। सरकार ने पिछले दिनों ही मंत्रिमंडल का विस्तार किया था।
इसमें मोहन लाल को मंत्री बनाए जाने की प्रबल संभावना थी , लेकिन उनका नाम मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया तो माना जाने लगा था कि उन्हें लोकसभा चुनाव में उतारा जा सकता है आखिरकार वही हुआ और उन्हें टिकट मिल गई।
रोहतक में जाट वोट बैंक हुड्डा का इसलिए अरविंद शर्मा के जरिए ब्राह्मण साधे
भाजपा ने रोहतक लोकसभा सीट पर एक बार फिर जाट व नॉन जाट समीकरण को देखते हुए ब्राह्मण कार्ड खेल दिया है। अरविंद शर्मा 25 साल में तीसरी बार हुड्डा परिवार के खिलाफ मैदान में उतरने जा रहे हैं। पहले 1999 में रोहतक लोकसभा सीट पर भूपेंद्र हुड्डा व 2019 में दीपेंद्र हुड्डा के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। अरविंद शर्मा ने ही 5 साल पहले रोहतक से भाजपा को जीत दिलाई। शर्मा को मैदान में उतारने का कारण जातिगत समीकरण है। इसी फॉर्मूले से भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में रोहतक से पहली जीत हासिल की थी। हालांकि चर्चा है कि पार्टी ने विकल्प पर मंथन किया , लेकिन शर्मा ही मजबूत चेहरा बनकर फिर सामने आए।
रोहतक लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा करीब सवा 6 लाख जाट वोटर, 2 लाख 98 हजार अनुसूचित जाति के वोटर, 1 लाख 70 हजार यादव वोटर, 1 लाख 24 हजार ब्राह्मण वोटर और 1 लाख 8 हजार पंजाबी वोटर हैं। जातिगत समीकरणों को देखते हुए ही बीजेपी ने ब्राह्मण प्रत्याशी पर भरोसा जताया है। हालांकि रोहतक लोकसभा क्षेत्र को हुड्डा परिवार का गढ़ माना जाता है। हुड्डा परिवार 9 बार सांसद बना है। रणबीर हुड्डा 1952 तथा 1957 में सांसद बने। 1991, 1996, 1998 और 2004 में भूपेंद्र हुड्डा और 2005, 2009 तथा 2014 में दीपेंद्र हुड्डा सांसद बने। 1952 से लेकर 2014 तक हुए चुनाव में ज्यादातर समय जाट नेता ही सांसद बने हैं। इसमें भी 11 बार कांग्रेस जीती है। 1962, 1971 व 1999 और 1977, 1980 तथा 1989 में गैर कांग्रेसी प्रत्याशी को जीत हासिल हुई थी।
कुरुक्षेत्र: नवीन जिंदल 2 बार पहले रह चुके सांसद
भाजपा से चुनावी योद्धा के रूप में नवीन जिंदल को टिकट मिलने के बाद मुकाबला और रोचक हो गया है। यहां से इनेलो के अभय चौटाला और इंडिया गठबंधन से डॉ . सुशील गुप्ता पहले से ही मैदान में डटे हैं। पहले पिता ओमप्रकाश जिंदल 1996 में सांसद रह चुके हैं।
फिर नवीन जिंदल वर्ष 2004 और 2009 में दो बार यहां से कांग्रेस के सांसद रह चुके हैं। अब उनके भाजपा में शामिल होने और यहां से प्रत्याशी घोषित किए जाने से दूसरे दलों के समीकरण गड़बड़ाते दिख रहे हैं। नवीन जिंदल के भाजपा में शामिल होने और कुरुक्षेत्र से चुनाव लड़ने की अटकलें करीब एक पखवाड़े से चल रही थी।
अब कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र में नवीन जिंदल को जहां अपना राजनीतिक वर्चस्व फिर से कायम करना होगा , वहीं इस क्षेत्र के सांसद और अब मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के लिए भी यह सीट जिताना प्रतिष्ठा का सवाल होगी।
कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण हावी रहने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। यहां 18 लाख मतदाता हैं। इनमें सबसे अधिक जाट मतदाताओं की संख्या है। यहां जाट मतदाता 14 % है और इसके साथ ही 4% जाट सिख मतदाता हैं। दूसरे नंबर पर ब्राह्मण और सैनी मतदाताओं की संख्या 8-8% है। पंजाबी समुदाय के 6% मतदाता हैं, जबकि अग्रवाल समुदाय के 5% मतदाता हैं। रोड मतदाताओं की संख्या 3% तथा सामान्य वर्ग से संबंध रखने वाले मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 0.5% है। इसी प्रकार ईसाई मतदाताओं की संख्या भी 0.5% है। राजपूत मतदाताओं की संख्या 1.5% है।
गुरुग्राम: राव इंद्रजीत सिंह का दक्षिणी हरियाणा में अच्छा प्रभाव
तीन बार कांग्रेस और दो बार भाजपा के टिकट पर सांसद रहे राव इंद्रजीत सिंह पर भाजपा ने फिर दांव खेला है। गुरुग्राम लोकसभा सीट से अभी कांग्रेस, इनेलो और जजपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। पिछली बार राव इंद्रजीत का मुकाबला कांग्रेस के प्रत्याशी कैप्टन अजय यादव के साथ हुआ था। यह सीट अहिरवाल बेल्ट अंतर्गत आती है, यहां हमेशा से ही यादवों का दबदबा रहा है। इस सीट पर राव इंद्रजीत का प्रभाव होने की सबसे खास वजह भी यही है।
राव इंद्रजीत सिंह के परिवार रामपुरा हाउस का पूरे दक्षिणी हरियाणा में अच्छा खासा प्रभाव है। गुरुग्राम से लेकर नांगल चौधरी तक उनके खुद के समर्थकों की तादाद अच्छी खासी है। जिसके दम पर राव इंद्रजीत सिंह दक्षिणी हरियाणा में अपने हिसाब से राजनीति करते हैं।
भिवानी-महेंद्रगढ़: जाट वोट बैंक की वजह से चौधरी धर्मबीर
भिवानी-महेंद्रगढ़ से भाजपा ने चौधरी धर्मबीर को टिकट दी है। वह चार बार MLA रह चुके हैं। दो बार 1987-2000 तोशाम, एक बार बाढड़ा 2005 और एक बार गुरुग्राम जिले की सोहना विधानसभा सीट से 2009 में विधायक का चुनाव जीता। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत के साथ-साथ धर्मबीर ने भी कांग्रेस छोड़ दी और भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर अपना पहला लोकसभा का चुनाव लड़ा और कांग्रेस नेत्री श्रुति चौधरी को हराया।
इसके बाद 2019 में फिर BJP के टिकट पर चुनाव जीता। तीसरी बार फिर से धर्मबीर पर ही भाजपा ने दांव खेला है। इन तीनों ही चुनाव में धर्मबीर की टिकट की पैरवी में राव इंद्रजीत सिंह की भूमिका अहम रही है। चौधरी धर्मबीर को राव इंद्रजीत सिंह का करीबी माना जाता है।
भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट पर 3,60,000 जाट तो 2,60,000 यादव मतदाता हैं। परिसीमन के बाद यादव बाहुल्य की चार विधानसभा सीटें भिवानी लोकसभा क्षेत्र में शामिल हो गईं। इस सीट पर राजपूतों के 91,000 वोट हैं जबकि अनुसूचित जाति के 1,42,000, ब्राह्मण समुदाय के 1,34,000, धानक समुदाय के 67,000, खाती समुदाय के 52,000, कुम्हार जाति के 50,000 और सैनी जाति के 34,000 वोटर किसी भी उम्मीदवार का भाग्य बदलने में अहम हैं।
फरीदाबाद: कृष्णपाल गुर्जर PM नरेंद्र मोदी और अमित शाह के करीबी
फरीदाबाद लोकसभा सीट पर दो बार लगातार लोकसभा चुनाव जीत चुके कृष्णपाल गुर्जर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह का करीबी कहा जाता है। उनकी पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से भी अच्छी दोस्ती रही है। शुरू से ही पार्टी से जुड़े रहे कृष्णपाल गुर्जर 1994 में पार्षद का चुनाव जीकर सक्रिय राजनीति में आए।
इसके बाद मेवला महाराजपुर सीट से विधानसभा का पहला चुनाव जीता। उनको टिकट मिलने की एक वजह यह भी रही कि उन्हें संगठन के साथ ही केंद्रीय नेताओं में अच्छी पैठ रही। 2014 और 2019 के दोनों लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड तोड़ मतों से जीते। सामाजिक दृष्टिकोण से उनकी अच्छी छवि बनी हुई है।
सिरसा: अशोक तंवर का खुद का वोट बैंक, अनुसूचित जाति का बड़ा चेहरा
भारतीय जनता पार्टी ने सिरसा लोकसभा क्षेत्र से अशोक तंवर को प्रत्याशी बनाया है। अपने 24 साल के राजनीतिक करियर में अशोक तंवर ने 4 पार्टियां बदल चुके हैं। लंबा राजनीतिक करियर होने के कारण उन्हें अच्छा अनुभव है। साथ ही तंवर का सिरसा में खुद का वोट बैंक है। बीजेपी ने इसी के चलते उन पर भरोसा जताया है। टिकट मिलने का बड़ा कारण क्षेत्र में उनकी सक्रियता और अनुसूचित जाति का बड़ा चेहरा होना है। इसके अलावा तंवर का जुझारूपन और हार के बावजूद सिरसा क्षेत्र में सक्रिय बने रहना भी टिकट का आधार माना जा रहा है।
पिछले 15 वर्षों से बिना किसी पद के तंवर सिरसा में सक्रिय हैं। हालांकि इसके बाद वह सिरसा से कभी नहीं जीत पाए। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व यह जानता था कि तंवर एक मात्र ऐसे उम्मीदवार हैं जो सिरसा लोकसभा सीट पर भाजपा की जीत दोहरा सकते हैं।
सिरसा में साढ़े 7 लाख के करीब अनुसूचित जाति, 7 लाख 25 हजार जाट समुदाय के लोग, 3 लाख 25 हजार जाट सिख, 1 लाख 82 हजार पंजाबी समुदाय (खत्री, अरोड़ा, मेहता), 1 लाख 11 हजार बनिया, 87 हजार कंबोज, 85 हजार ब्राह्मण, 55 हजार बिश्नोई, 48 हजार पिछड़ा वर्ग (कुम्हार, सैनी, अहीर, गुर्जर, खाती, सुनार), 1 लाख 30 हजार अन्य (मुस्लिम, क्रिश्चियन, जैन आदि) लोग हैं।